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महावीर का पुनर्जन्म
नहीं है। शास्त्र और अनुभव की दूरी को समझने का यह एक स्थूल दृष्टांत बन सकता है।
एक परिवार के मारे सदस्य अन्धे थे। केवल एक व्यक्ति को आंखों से दिखाई देता था। चक्षुष्मान् व्यक्ति कहता-देखो! मौसम कितना सुहाना है। आकाश में बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं। उद्यान में कितने सुन्दर फूल खिल रहे हैं। यह मनभावना मौसम प्रत्येक व्यक्ति को आह्लादित कर रहा है। उसकी बातों को सुनकर अन्धे व्यक्ति एक साथ बोल उठे-यह बहुत फिजूल की बातें कर रहा है। एक दिन एक अनुभवी वैद्य आया। उसने कहा-'मैं तुम सब लोगों का इलाज कर सकता हूं, तुम सबको चक्षुष्मान बना सकता हूं।' अन्धे व्यक्तियों ने कहा-'हम सब ठीक हैं। हमारा एक साथी बीमार है। वह रोज ऊटपटांग बातें कर हमें बोर करता है। आप उसका इलाज कर दीजिए, सब कुछ टीक हो जाएगा।' भगवती स्वतः प्रमाण नहीं है
जो अंधे हैं, वे अंधे नहीं हैं। जो अंधा नहीं है, वह अन्धा है। अन्धे बीमार नहीं हैं। बीमार है चक्षुष्मान। जिसकी आंखें ठीक है, उसको आंखों का इलाज करना है। जिन्हें दिखाई नहीं देता, उनकी आंखें ठीक हैं। यह दुनिया की बड़ी विचित्र प्रकृति है। इस दुनिया में शब्दों के आधार पर, आंखो के आधार पर, इन्द्रियों के आधार पर न जाने क्या-क्या हो जाता है। इस स्थिति में अनुभव का महत्त्व सहज प्रस्फुटित होता है। साक्षात् ज्ञान का मूल्य सबसे अधिक है, महावीर की इस उद्घोषणा से सर्वज्ञवाद को नया प्रकाश मिला। उन्होंने कहा-प्रत्यक्ष की ओर प्रस्थान करो, परोक्ष में मत अटको, ग्रंथों को ही सब कुछ मत मानो। हालांकि जब तक प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता तब तक ग्रन्थ भी सहारा बनते हैं, आधार बनते हैं, किन्तु ग्रन्थ व्यक्ति का अन्तिम लक्ष्य नहीं है, मूल आधार नहीं है। इसीलिए जैन दर्शन ने ग्रन्थ के स्वतः प्रामाण्य को स्वीकार नहीं किया। स्वतः प्रमाण सर्वज्ञ हैं, अतीन्द्रिय ज्ञान से सम्पन्न पुरुष हैं। भगवती स्वतः प्रमाण नहीं है, भगवान स्वतः प्रमाण हैं, यह सर्वज्ञवाद की महत्त्वपूर्ण प्रस्थापना
मतवाद की विडम्बना
जब साक्षात् ज्ञानी नहीं होते, तीर्थंकर नहीं होते तब ग्रन्थ या शास्त्र प्रामाणिकता का आधार बनते हैं। जब ग्रन्थ को प्रमुखता मिलती है तब क्या स्थिति बनती है, इसका मार्मिक चित्रण महावीर की भाषा में उत्तराध्ययन सूत्र में उपलब्ध होता है
न हु जिणे अज्ज दिस्सई, बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए।
संपइ नेयाउए पहे, समयं गोयम! मा पमायए।।
महावीर ने कहा-'गौतम! आज जिन नहीं दिख रहे हैं। जो मार्गदर्शक हैं, वे एकमत नहीं हैं-अगली पीढ़ियों को इस कठिनाई का अनुभव होगा। किन्तु अभी मेरी उपस्थिति में तुझे पार ले जाने वाला न्यायपूर्ण पथ प्राप्त है।'
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