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आज तीर्थकर नहीं है?
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दूसरे प्रकार के प्रश्न हैं। आज अध्यात्म के अनेक सिद्धान्त विज्ञान से टकरा रहे हैं और विज्ञान के अनेक सिद्धान्त अध्यात्म से टकरा रहे हैं। अध्यात्म और विज्ञान-दोनों के सामने अनेक प्रश्न हैं। विज्ञान ने जो प्रश्न प्रस्तुत किए हैं, क्या उनके उत्तर अध्यात्म में उपलब्ध हैं? क्या विज्ञान की खोजों के साथ आध्यात्म की संगति बिठाई जा सकती है? अध्यात्म और विज्ञान का कहां-कहां समन्वय हो सकता है? इन प्रश्नों के संदर्भ में आज नए सिरे से चिन्तन करना और एक निष्कर्ष को उपलब्ध होना अपेक्षित है। शाश्वत स्वर का उद्गान
'वर्तमान की उपेक्षा मत करो' महावीर का यह संबोधन केवल गौतम के लिए ही नहीं था। यह शाश्वत स्वर का उद्गान है। इस सूत्र में मनुष्य की प्रकृति का सजीव चित्रण है। मनुष्य प्राप्त अवसर का लाभ नहीं उठाता किन्तु अवसर के चले जाने के बाद उसकी स्मृति करता है। वर्तमान क्षण का सम्यक् उपयोग करना अपने व्यक्तित्व का विकास करना है। वर्तमान का क्षण अनुभूति का क्षण है। अतीत के क्षण की स्मृति हो सकती है, वह तर्क का विषय बन सकता है। तर्क से जो गति प्रवर्तित होती है वह अनुभूति में विराम लेती है
अनुभूतिर्वर्तमानेऽतीते तर्कः स्मृतिर्भवेद् ।
तर्काद् गतिः प्रवर्तेत, सानुभूतौ विरम्यते।। हमारे विकास के दो साधन हो सकते हैं-अनुभव और शास्त्र। अनुभव सबसे बड़ा होता है। आज व्यक्ति का विश्वास ग्रन्थ या शास्त्र पर ज्यादा है। जैन धर्म के मूल सिद्धान्तों में आस्था रखने वाला, आत्म कर्तृत्व में विश्वास करने वाला ग्रन्थ या शास्त्र को अधिक मूल्य नहीं दे सकता। वह अनुभव को अधिक महत्त्व देगा क्योंकि अनुभव उसका अपना होता है। ग्रन्थ की समस्या
ग्रन्थ या शास्त्र के बारे में विमर्श करें तो लगेगा-ग्रन्थ की बड़ी समस्या है। अनेक कठिनाइयां ग्रन्थ या शास्त्र के साथ जुड़ी हुई हैं। ग्रन्थ का एक शब्द पचास भाषाओं में उपलब्ध हो सकता है, उसके पचास अर्थ हो जाते हैं। किसे सही माना जाए। लिखने वाले ने जिस आशय से लिखा, जिस द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में लिखा और जिस अनुभूति के साथ लिखा किन्तु आज पढ़ने वाले को न उसका आशय ज्ञात है, न वह द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव है और न ही वह अनुभूति के उस स्तर को पा सका है। लिखने वाला था एवरेस्ट की चोटी पर और पढ़ने वाला बैठा है तलहटी में । एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ा व्यक्ति जिस अनुभूति के साथ जी रहा है, तलहटी में बैठा व्यक्ति उस अनुभूति को कैसे पा सकेगा? एक स्थूल उदाहरण से इस बात को समझें-एक व्यक्ति मकान की छत पर चढ़ा हुआ है और एक व्यक्ति जमीन पर खड़ा है। छत पर खड़ा व्यक्ति कह रहा है-आंधी आ रही है, बादल आ रहे हैं। नीचे खड़ा व्यक्ति कहेगा-नहीं, कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। छत पर खड़ा व्यक्ति कहता है-अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है। नीचे खड़ा व्यक्ति कहेगा-सूर्य दिख ही नहीं रहा है। छत पर चढ़े
हुए व्यक्ति का ज्ञान जितना स्पष्ट है, नीचे खड़े व्यक्ति का ज्ञान उतना स्पष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only
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