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महावीर का पुनर्जन्म
सामने चले जाओ । प्रश्न प्रस्तुत हो जाएगा। एक साधु और एक साध्वी के मन में प्रकंपन पैदा हो जाएगा, श्रावक समाज में हलचल पैदा हो जाएगी। प्रश्न होगा - किस आधार पर यह निर्णय लिया गया। महावीर को आधार बताने की जरूरत नहीं थी। उनका कथन किसी ग्रन्थ या शास्त्र के आधार पर नहीं था । उन्होंने जो कुछ कहा, अपने अनुभव के आधार पर कहा, साक्षात ज्ञान के आधार पर कहा । वे किसी के द्वारा प्रवर्तित नहीं थे। वे स्वयं प्रवर्तक थे। सारे शास्त्र उनकी वाणी से पैदा हुए हैं, सारे सिद्धान्त उनके अनुभव से उपजे हैं। मनुष्य की नैसर्गिक प्रकृति
महावीर ने कहा – 'गौतम! अनुभव का क्षण उपलब्ध होना सहज नहीं है क्योंकि मनुष्य का स्वभाव वर्तमान केन्द्रित नहीं है । वह अतीत की स्मृति करता है और वर्तमान की उपेक्षा । व्यक्ति की इस चिरन्तन प्रकृति में परिर्वतन अपेक्षित है'
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अतीतं स्मर्यते भूयो, वर्तमानमुपेक्ष्यते । मनुष्याणां निसर्गो ऽयं, सन्मते ! परिवर्त्यताम् ।।
महावीर ने कहा- 'सन्मति गौतम ! कभी तुम्हारे जीवन में ऐसा प्रसंग न आए जिसमें तुम्हें अतीत की स्मृति करनी पड़े और वर्तमान की उपेक्षा हो जाए। आज मैं तुम्हारे सामने प्रस्तुत हूं। तुम इस अवसर का लाभ उठा लो, मेरे अनुभवों से स्वयं को लाभान्वित कर लो। जो भी प्रष्टव्य है, पूछ लो, प्रमाद मत करो ।'
महावीर के इस संबोधन से उद्बुद्ध गौतम ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी । गौतम ने ढेर सारे प्रश्न प्रस्तुत किए । गौतम प्रश्न पूछते चले गए, महावीर उन्हें समाहित करते चले गए। उन प्रश्नोत्तरों का एक विशाल संचयन भगवती सूत्र में संदृब्ध है।
केवली एवं छद्मस्थ का ज्ञान
भगवान महावीर प्रत्यक्षज्ञानी थे। जिसे प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त नहीं है, वह विश्व के सूक्ष्म सत्यों को जान नहीं सकता। आज वैज्ञानिक उपकरणों का बहुत विकास हुआ है। उनके माध्यम से सूक्ष्म तत्त्व जाने जा रहे हैं, सूक्ष्म जीवाणु और एटम जैसे पदार्थ गम्य बन रहे हैं। टेलीस्कोप के द्वारा बहुत दूर की वस्तुओं को देखा जा रहा है, पकड़ा जा रहा है। जो यंत्रों के माध्यम से देखा जा रहा है, पकड़ा जा रहा है, वह सूक्ष्म है। सूक्ष्म के दो रूप हैं- मूर्त और अमूर्त । जो जाना जा रहा है, वह मूर्त्त या रूप है, अमूर्त्त को नहीं जाना जा रहा है । उसे यंत्रों के द्वारा जाना भी नहीं जा सकता। जिसकी चेतना का समग्र विकास हो जाता है, जो कैवल्य को उपलब्ध हो जाता है, वह मूर्त और अमूर्त्त - दोनों को जान लेता है । स्थानांग सूत्र में कहा गया- धर्मास्तिकाय आदि छह तत्त्वों को छद्मस्थ सर्वभाव से नहीं जान सकता, उन्हें केवली सर्वभाव से जान लेता है । प्रश्न अतीत में भी होते रहे हैं और वर्तमान में भी प्रस्तुत हैं । गौतम के प्रश्नों को समाहित करने के लिए भगवानं महावीर उपलब्ध थे किन्तु आज कोई तीर्थंकर नहीं है । उस युग के प्रश्न दूसरे प्रकार के थे और इस वैज्ञानिक युग में
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