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________________ १६ आज तीर्थंकर नहीं है? एक दिन बुद्धि अनुभव को जगाने की बात करने लगी, सिद्धांत से हटकर प्रयोग की भूमिका में जाने लगी। अहंकार चौंक पड़ा। उसने सोचा-यह क्या हो रहा है, अन्याय हो रहा है। वह तत्काल बुद्धि से बोला-'देवी! तुम क्या कर रही हो, अनुभव को जगाने का विचार तुम्हारे मन में क्यों जागा? इसे सोया ही रहने दो। इसको जगाकर क्यों सिरदर्द मोल ले रही हो।' बुद्धि बोली-'अनुभव बुद्धि से आगे की बात है। वह जागेगा तो जगत का कल्याण होगा।' अहंकार बोला-'यही तुम्हारी नासमझी है। तुम रहस्य को नहीं जानती। यदि यह अनुभव की चेतना जाग गई तो सबका नुकसान होगा। न तुम बचोगी? न मैं बचूंगा और न यह दुनिया बचेगी।' जब व्यक्ति का अनुभव जाग जाता है तब बुद्धि नीचे रह जाती है, अहंकार विलीन हो जाता है। अनुभव जागरण का अर्थ है-अहंकार की समाप्ति। अहंकार आदमी में तब तक रहता है, जब तक अनुभव नहीं जागता। जिस दिन अनुभव की चेतना जागती है, अहंकार अपनी मौत मर जाता है। अनुभव के जागते ही बुद्धि का मूल्य समाप्त हो जाता है। उसके जागने पर व्यक्ति के व्यवहार का नियामक बुद्धि नहीं रहती। अनुभव उसके व्यवहार का संचालक बन जाता है। आज सब जगह पदार्थों का मूल्य है, जगत का मूल्य है। जिस दिन अनुभव जागता है, ये सब निर्मूल्य बन जाते हैं। व्यक्ति का स्वर बदल जाता है। अनुभव जागने पर व्यक्ति कहेगा-ब्रह्म सत्यं, जगत मिथ्या। व्यक्ति का सारा दृष्टिकोण बुद्धि से प्रभावित है। अनुभव उसके इस प्रभाव का अपनयन कर देता हमारे दो चित्त हैं-अनुभव का चित्त और बुद्धि का चित्त। भगवान् महावीर के सामने यह सचाई स्पष्ट थी। उन्होंने गौतम से कहा-'आयुष्मन्! मैं तुम्हें जो कह रहा हूं, वह किसी शास्त्र या ग्रन्थ या ग्रन्थ के आधार पर नहीं कह रहा हूं, किसी ग्रंथ में लिखी हुई बात को नहीं दोहरा रहा हूं। तुम्हें करणीय और अकरणीय, विधि और निषेध के लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है क्योंकि मैं जो कह रहा हूं, वह अनुभव के आधार पर कह रहा हूं।' महावीर किसी के द्वारा प्रवर्तित नहीं थे महावीर ने गौतम से कहा-'गौतम! तुम्हारा पुराना मित्र स्कंदक आ रहा है। तुम उसके सामने चले जाओ।' गौतम चले गए। किसी के मन में यह प्रश्न नहीं उभरा-महावीर ने एक अन्यतीर्थिक मुनि के सामने गौतम को कैसे भेजा? आज स्थिति बदल गई है। आज अगर कहा जाए-अमुक मुनि आ रहे हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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