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महावीर का पुनर्जन्म वर्ष भी मल्ल युद्ध की प्रतियोगिता आयोजित हुई। इस बार दो युवा मल्ल-मच्छिय और फलिह-के बीच मुकाबला था। मच्छिय मल्ल अहंकार में चूर था। उसने सोचा-मैंने अट्टण जैसे मल्ल को पराजित कर दिया। यह तो नया-नया मल्ल है, मेरे सामने टिक ही नहीं पाएगा। मल्ल-कुश्ती का समय हुआ। एक ओर सोपारक नगर का मच्छिय मल्ल था तथा दूसरी ओर उज्जैन का फलिह मल्ल। कुश्ती प्रारम्भ हुई, संध्या तक चलती रही, कोई निर्णय नहीं हो पाया। न कोई हारा, न कोई जीता। दोनों बराबर रहे। समय-सीमा समाप्त होने पर कुश्ती दूसरे दिन के लिए स्थगित हो गई
दोनों मल्ल अपने-अपने खेमे में चले गए। मच्छिय मल्ल अपने खेमे में चला गया, फलिह मल्ल अपने खेमे में चला गया। अट्टण मल्ल ने फलिह मल्ल से पूछा-'बेटा! तुम बहुत बहादुरी से लड़े, कहीं तुम्हें चोट तो नहीं आई, कहीं दर्द तो नहीं है?' फलिह मल्ल ने कहा-'पिताजी! अमुक स्थान पर चोट लगी है, अमुक स्थान पर दर्द है।' उसने सारी स्थिति स्पष्ट बता दी। अट्टण मल्ल ने उसके तेल मालिश की, चोट ग्रस्त स्थानों पर मरहम लगाई, रात भर में उसे पुनः तरोताजा बना दिया।
मच्छिय मल्ल से राजा ने पूछा-'क्या थकान आई है? कहीं चोट तो नहीं लगी? कोई समस्या हो तो बता दो।' मच्छिय मल्ल अहंकार में डूबा हुआ था। उसने कहा-'कुछ भी नहीं है, सब कुछ ठीक है।' राजा ने तेल मालिश कराने का निर्देश दिया। उसने राजा की इस बात को भी टाल दिया। दूसरे दिन प्रातः फिर कुश्ती आयोजित हुई। एक ओर फलिह मल्ल तरोताजा होकर आया था, दूसरी ओर मच्छिय मल्ल थका हुआ था, प्रमाद और अहंकार से आविष्ट था। मल्ल युद्ध प्रारम्भ होते ही मच्छिय मल्ल पर फलिह मल्ल हावी हो गया और कुछ ही समय में फलिह मल्ल ने मच्छिय मल्ल को पराजित कर दिया।
__जो अप्रमत्त होता है, वह जीत जाता है। जो प्रमत्त होता है, वह हार जाता है। पराजय का सूत्र है प्रमाद। प्रमाद के साथ पराजय जुड़ी हुई है। पराजय को प्रमाद से कभी अलग नहीं किया जा सकता। विजय की दिशा में प्रस्थान का पथ है अप्रमाद। उस पर बढने वाला कभी परास्त नहीं होता। महावीर का यह शाश्वत स्वर उसके लिए आलोक स्तम्भ बन जाता है--समयं गोयम! मा पमायए।
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