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________________ १८ समय का अंकन हो 'समयं गोयम! मा पमायए'-यह भगवान् महावीर का शाश्वत स्वर है। गौतम को उद्दिष्ट कर निकला हुआ यह स्वर आज भी उतना ही मूल्यवान है, प्रासंगिक है, जितना ढाई हजार वर्ष पहले था। यह शाश्वत स्वर अतीत में भी मूल्यवान् बना रहेगा। इस अमर स्वर को समझने के लिए पश्चिमी विचारक जॉर्ज हारेस लॉ युनर की एक घटना को समझना आवश्यक है। उसने उन वस्तुओं की एक सूची बनाई, जो पैसे से नहीं खरीदी जाती हैं। दो प्रकार की वस्तुएं होती हैं—एक वे वस्तुएं, जो धन से उपलब्ध हो जाती हैं। दूसरी वस्तुएं वे हैं, जो धन से प्राप्त नहीं होतीं। उसने जो सूची बनाई, वह अन्तिम नहीं है। उसे बढ़ाया भी जा सकता है, उसका नवीनीकरण भी किया जा सकता है। उस सूची में कुछ बातें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं• सच्ची मित्रता कभी पैसे से खरीदी नहीं जा सकती। वह मित्रता, जिसमें कभी धोखा नहीं होता, धन से उपलब्ध नहीं होती। सच्ची मित्रता हृदय की पवित्रता है, उसका कोई मूल्य नहीं हो सकता। पवित्र अन्तःकरण कभी पैसे से नहीं खरीदा जा सकता। प्रसन्नता धन से प्राप्त नहीं होती। • मन की शांति को पैसे से नहीं पाया जा सकता। दुनिया में ऐसे लोग हैं, जिनके पास धन की कोई कमी नहीं है। किन्तु प्रसन्नता बिल्कुल नहीं है। उनका चेहरा सदा मुरझाया हुआ रहता है। मैंने स्वयं एक बड़े उद्योगपति को रोते-बिलखते देखा है। हिन्दुस्तान के पांच-सात उद्योगपतियों में से प्रमुख उद्योगपति की मां आचार्यश्री के सामने सुबकने लगी। आचार्यश्री ने पूछा-'तुम रोती क्यों हो? तुम्हें क्या दुःख है?' उसने कहा-'महाराज! मेरे दुःख की बात मत पूछिए। इस दुनिया में मैं जितनी दुःखी हूं उतना शायद दूसरा कोई नहीं होगा। यदि प्रसन्नता धन से प्राप्त होती तो देश के धन्ना सेठ उसे सबसे पहले खरीद लेते। आचार्य उमास्वाति ने बहुत मार्मिक बात लिखी स्वर्गसुखानि परोक्षाणि अत्यन्तपरोक्षं च मोक्षसुखम् । प्रशमसुखं प्रत्यक्षं, न परवशं न च व्ययप्राप्तम् ।। स्वर्गसुख परोक्ष है, मोक्ष सुख अत्यन्त परोक्ष है। यह मानसिक शांति-प्रशमसुख प्रत्यक्ष है। यह न दूसरे के वश में है और न ही इसे खरीदा जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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