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________________ १२२ बहुत वर्ष पहले की बात है । आचार्यवर दिल्ली में थे । अमेरिका के एक उद्योगपति आचार्यवर के दर्शनार्थ आए। उन्होंने कहा - 'आचार्य श्री ! मैं अमेरिका जा रहा हूं। आप अमेरिकन लोगों के लिए शांति का संदेश दीजिए।' आचार्यश्री ने प्रश्न किया- ' आपको क्या जरूरत है शांति के संदेश की । हमने सुना है— अमेरिकन लोगों के पास विशाल वैभव है, धन है, भोग के सारे साधन उपलब्ध हैं । फिर आपको क्यों चाहिए शांति का संदेश ?' उद्योगपति तपाक से बोले—‘आचार्यश्री! हमारे पास धन की कोई कमी नहीं है किन्तु धन से कभी शांति नहीं मिलती। हमें शांति की जरूरत है। धन से कभी मन की शांति को खरीदा नहीं जा सकता ।' महावीर का पुनर्जन्म मूल्य, अमूल्य और मूल्यातीत इस सूची के आधार पर तीन शब्द बन गए - मूल्य, अमूल्य और मूल्यातीत । एक वह वस्तु है, जिसका मूल्य होता है। जहां पैसे का संबंध जुड़ा, मूल्य की स्थापना हो गई। एक वस्तु का मूल्य एक पैसा भी हो सकता है, हजारों रुपए भी हो सकता है किन्तु पैसे से मिलने वाली कोई भी वस्तु अमूल्य नहीं होती । जिसका कोई मूल्य नहीं है, वह अमूल्य है । दुनिया में ऐसी बहुत वस्तुएं हैं, जिनका कोई मूल्य नहीं होता। बहुत सारी वस्तुएं निकम्मी मानी जाती हैं, तुच्छ मानी जाती हैं, मूल्यहीन मानी जाती हैं । ऐसी वस्तुओं का कोई महत्त्व नहीं होता, उनका कोई संग्रह नहीं करता, वे पैरों तले रौंदी जाती हैं । कुछ वस्तुएं ऐसी होती हैं, जो मूल्यातीत होती हैं। मूल्यातीत स्थिति वह है, जहां सारे मूल्य नीचे रह जाते हैं, सारे मापदण्ड अकिंचित्कर बन जाते हैं, सारी कसौटियां, सारे तराजू निकम्मे बन जाते हैं। मूल्यातीत स्थिति को मापने वाला कोई मापक नहीं होता, तौलने वाला कोई तराजू नहीं होता, कसौटी करने वाला कोई कषोपल नहीं होता । विजय और पराजय का सूत्र मूल्य शब्द धन से जुड़ा हुआ है। अमूल्य के दो अर्थ बन गए - मूल्यहीन और मूल्यातीत। महावीर ने गौतम को सम्बोधित कर कहा - गौतम! क्षण भर भी प्रमाद मत करो, समय का अंकन करो। इसे खरीदा नहीं जा सकता। जो समय का अंकन कर लेता है, वह कभी पराजित नहीं होता। महावीर का विजयी होने में विश्वास था । पराजय उन्हें कभी मान्य नहीं थी । वे बहुत पराक्रमी व्यक्ति थे । पराक्रमी व्यक्ति विजय में विश्वास करता है। जो कमजोर होता है, कायर होता है, वह पराजय की स्थिति में चला जाता है । महावीर ने सदा विजय का जीवन जिया, वे कभी परास्त नहीं हुए । महावीर को भयंकर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, अनेक भीषण उपसर्ग और परीषह प्रस्तुत हुए किन्तु वे कभी विचलित नहीं हुए। कष्ट देने वाले स्वयं पराजित हो गए। महावीर के जीवन में एक भी क्षण ऐसा नहीं आया, जब उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा हो । महावीर ने विजय के सूत्र को पकड़ा था। अगर मुझसे पूछा जाए - विजय का सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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