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महावीर का पुनर्जन्म
गृहस्थ बन गया इसलिए वन्दनीय नहीं रहा। देवता बनकर भी वह गृहस्थ ही बना, अव्रती या असंयमी ही बना क्योंकि उसका अव्रत आश्रव सर्वथा क्षीण नहीं हुआ। यदि हम व्यक्त इच्छा के निग्रह को प्रबल बनाते चले जाएं और उसके दबाव से अव्यक्त इच्छा की आग बुझती चली जाएं तो क्षय की प्रक्रिया तेज होगी, सावद्य योग का त्याग सहज बनेगा, व्रत की शक्ति बढ़ती चली जाएगी। सावध योग के त्याग का अर्थ है-बाहर से भीतर की ओर प्रस्थान। यह प्रस्थान जितनी तीव्र गति से होगा, व्यक्ति की आन्तरिक क्षमता उतनी ही प्रबल बनती चली जाएगी।
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