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महावीर का पुनर्जन्म
करने का अर्थ है-स्थूल या व्यक्त इच्छा का निग्रह कर अव्यक्त इच्छा को निष्क्रिय बना देना। विस्तार विकल्प से
___ स्थूल से सूक्ष्म की ओर गति करना योग शास्त्र का नियम है। यह आचार-शास्त्र में भी घटित होता है। बहुत लोग कहते है-ध्यान का ऐसा मार्ग बतलाइए, जिससे विचार आने बन्द हो जाएं, निर्विकल्प समाधि में चले जाएं। उन्हें कहा जाता है-पहले स्थूल का निरोध करो। निर्विकल्प समाधि बहुत आगे की बात है, पहले विकल्पों का तांता तोड़ना सीखो। विचार का जो सिलसिला चल रहा है उसे तोड़ना सीखो। पहले ही चरण में निर्विकल्प समाधि की बात संभव नहीं है। यशोविजयजी ने एक बहुत सुन्दर बात कही है-यह माया विकल्प-रूपा है। हमारी दुनिया बहुत छोटी है। उसका सारा विस्तार विकल्प से हुआ है। आज के वैज्ञानिक मानते हैं-यदि सारी दुनिया को कूट-पीसकर घनीभूत बनाया जाए तो मात्र एक आंवले जितनी बनेगी। यह बात बड़ी विचित्र लगती है। क्या यह कल्पना की जा सकती है? दुनिया का ठोस भाग कितना है? सारी माया ही माया है, प्रपंच ही प्रपंच है, सर्वत्र विस्तार ही विस्तार है। ठोस द्रव्य बहुत थोड़ा है। यह जगत लम्बा-चौड़ा दिखता है, पर ठोस भाग बहुत नगण्य है। जरूरी है नियम का ज्ञान
हमारा सूक्ष्म जगत बहुत विचित्र है। हम स्थूल जगत् को ही न समझें किन्तु सूक्ष्म जगत के नियमों को भी समझने का प्रयत्न करें। स्थूल जगत के नियम अलग होते हैं, सूक्ष्म जगत के नियम अलग होते हैं।
गडरिया लुहार एक गांव से दूसरे गांव घूमते रहते हैं, इन्हें कहीं मकान खोजना नहीं पड़ता। एक दृष्टि से गडरिया लुहार मुनि की तरह अनिकेत होता है। वह खुले आकाश में ही रहता है और खुले आकाश में ही सोता है। एक बार एक व्यक्ति ने अनुकम्पा की। उसने घोषणा की-गडरिये लुहारों को भी बसाया जाए। उनको मकान दिए गए, बसाने का प्रयत्न किया गया। एक गडरिया मकान में रहने लग गया, पर उसका मन नहीं लगा। दो-चार दिन बीते। एक अधिकारी उनके हालात जानने आया। उस लुहार से पूछा गया-'बोलो भाई! सुखी तो हो, कोई समस्या तो नहीं है?'
उसने कहा-'सुखी तो नहीं हूं' 'अरे! मकान मिल गया फिर सुखी नहीं? 'मकान तो मिल गया पर मन में बड़ा दुःख है।' 'किस बात का दुःख है?'
'मैं सदा खुले आकाश में सोता था और अब इस छत के नीचे सोता हूं। सोते समय मन में आता है-मैं सो रहा हूं, कहीं छत गिर तो नहीं जाएगी? मैं सुखी बनने के स्थान पर उलटा दुःखी बन गया हूं।'
जो नियम को नहीं जानता है, वह हमेशा दुःख में रहता है, उलझन में रहता है। खुले आकाश का अलग नियम है और छत का अलग नियम है। वह
छत के नियम से परिचित नहीं था। उसे इस बात का पता नहीं था कि छत ऐसे Jain Education International For Private & Personal Use Only
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