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________________ ११६ महावीर का पुनर्जन्म अव्यक्त इच्छा पर। निरोध किया व्यक्त इच्छा का और प्रभावित हुई अव्यक्त इच्छा। अव्यक्त इच्छा है भीतरी नांग। प्रत्येक चीज की मांग भीतर से आती है। रागात्मक और द्वेषात्मक जितनी मांगें हैं, वे भीतर से उठती हैं। व्यक्त इच्छा के निरोध का अर्थ है-अव्यक्त इच्छा की मांग की पूर्ति नहीं करना। व्यक्त इच्छा को त्यागने का अर्थ है-भीतर से जो मांग आई, उसका निरोध कर दिया, उसे अस्वीकार कर दिया। जब-जब भीतर से मांग आए, उसे अस्वीकार करते चले जाएं, रोकते चले जाएं। इसका परिणाम होगा-मांग करने वाली जो अव्यक्त इच्छा है, वह निराश हो जाएगी। एक बार मांगा और नहीं मिला। दूसरी बार मांगा, तीसरी बार मांगा और नहीं मिला तो वह मुरझा जाएगी। प्रश्न होता है-भीतरी इच्छा को पोषण कौन दे रहा है? बल कौन दे रहा है? जो इच्छा भीतर में पैदा होती है, उसे पूरा कर दिया जाता है तो भीतरी इच्छा को बल मिलता है। अव्यक्त इच्छा जो चाहती है, उसकी पूर्ति से उसका शरीर पुष्ट बनता है। जो मांग भीतर से आई, उसे अस्वीकार कर दिया जाए। वह जैसा चाहती है वैसा नहीं किया जाए। वह मांग एक बार आएगी, दो बार आएगी, दस बार आएगी किन्तु अंततः मुरझा जाएगी। इच्छा का शमन क्यों? वर्तमान में फीड करने की बात बहुत चलती है। एक ऐसा तत्त्व, जो फीड कर रहा है यानी अव्यक्त इच्छा को पोषण दे रहा है। पोषण मिलने से अव्यक्त इच्छा पुष्ट और बलवान बनती है। यदि पोषण मिलना बंद हो जाए, व्यक्त इच्छा का सहयोग मिलना बंद हो जाए तो अव्यक्त इच्छा पुष्ट नहीं बन पाएगी, बलवान नहीं हो पाएगी। जब तक शरीर में थाइराइड ग्रन्थि चयापचय की क्रिया करती है तब तक शरीर को पोषण मिलता है। जब चयापचय की क्रिया करना बंद कर देती है, शरीर सूखने लग जाता है, पतला होने लग जाता है, शक्तिशून्य बनता चला जाता है। कारखाने चलते हैं, उनमें पक्का माल बनता है किन्तु कारखाना अपने आप नहीं चलता। वह चलता है कच्चे माल के आधार पर। किसी कारखाने में लोहे के नल बन रहे हैं, छड़ें बन रही हैं, खम्भे बन रहे हैं किन्तु वे तब तक बन सकते हैं जब तक कच्चा लोहा मिलता रहे। कच्चे माल की आपूर्ति बंद हो जाए तो कारखाना कब तक चलेगा? लोहा खान में बहुत है किन्तु कारखाना बंद हो गया तो सारा कार्य ठप्प हो जाएगा। यह एक सचाई है-जब-जब मन में इच्छा जागे. हम उसे रोकते रहें तो एक दिन आंतरिक इच्छा निष्क्रिय बन जाएगी। इच्छा का शमन आंतरिक इच्छा को निष्क्रिय बना देता है। . सावद्य प्रवृत्ति के त्याग का परिणाम है-व्रत संवर। इसका अर्थ तर में जो अव्यक्त इच्छा विद्यमान है. अविरति विद्यमान है उसे पोषण मिलना बंद हो गया। अव्यक्त इच्छा का संवरण हो गया यानी व्रत संवर हो गया। एक प्रश्न उभरता है-जब सावद्य प्रवृत्ति का त्याग हो गया, व्रत संवर हो गया तब मन में त्याज्य इच्छाएं क्यों जागती हैं? एक व्यक्ति ने सावध प्रवृत्ति का संकल्प किया किन्तु उसके मन में कभी हिंसा और चोरी की भावना जाग जाती है, कभी काम-वासना, लोभ और लालच का भाव जन्म ले लेता है। ऐसा क्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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