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________________ इच्छा हु आगाससमा अणंतिया ११५ जा रहा है। चलते-चलते वह दूसरी दिशा में मुड़ गया, यह उसकी इच्छाचालित क्रिया है। एक चींटी भी चलते-चलते मुड़ जाती है क्योंकि उसमें इच्छा है। एक घोड़ा एवं एक गधा भी चलते-चलते मुड़ जाता है किन्तु एक रेलगाड़ी ऐसा नहीं कर सकती। वह यह नहीं कह सकती-मेरी इच्छा नहीं होगी तो मैं पटरी पर नहीं चलूंगी। वह परप्रेरित है। उसे दूसरे की इच्छा पर अपना कार्य सम्पादित करना होता है। उसकी अपनी कोई इच्छा नहीं हो सकती। एक मनुष्य की अपनी इच्छा होती है। वह पटरी के ऊपर भी चल सकता है और नीचे भी चल सकता है। मनुष्य की व्यक्त इच्छा व्यवहार को संचालित करती है किन्तु उसके पीछे जो अव्यक्त इच्छा है, वह व्यक्त इच्छा का भी संचालन कर रही है। व्यवहार का मूल प्रवर्तक है अव्यक्त इच्छा। गुजरात की प्रसिद्ध कहानी है। एक व्यक्ति ने दर्जी को अपना कोट बनाने के लिए दिया। एक सप्ताह बीत गया। वह व्यक्ति दर्जी के पास गया। उसने कहा-क्या मेरा कोट सिल गया? 'नहीं' 'कब तक कोट पूरा बन जाएगा?' 'जब प्रभु की मर्जी होगी।' 'मुझे उस कोट की सख्त जरूरत है।' 'जब प्रभु की इच्छा होगी तभी मिलेगा। अभी नहीं मिलेगा।' __ दो, तीन सप्ताह तक उस व्यक्ति ने दर्जी के घर कई चक्कर लगाए किन्तु दर्जी हर बार वही उत्तर देता-जब प्रभु की इच्छा होगी, कोट मिल जाएगा। उस व्यक्ति ने कहा-'प्रभु की इच्छा की बात जाने दो। यह बताओ तुम्हारी इच्छा कब देने की है?' प्रभु की इच्छा कहें, आत्मा की या अन्तर की इच्छा कहें या अव्यक्त इच्छा कहें। केवल शब्दों का ही अन्तर है। इनके तात्पर्य में विभेद नहीं है। व्यक्ति हर काम अपनी इच्छा से करता है। इच्छा के बिना कोई काम नहीं होता। कितनी ही व्यवस्थाएं निर्मित की जाएं, कानून बनाए जाएं, नियंत्रण किया जाए किन्तु जब तक व्यक्ति का मानस नहीं बनता है, इच्छा नहीं बनती है, तब तक उससे कोई कार्य करवा नहीं सकता। कानून के जरिए व्यक्ति का गला तो काटा जा सकता है किन्तु उससे किसी बात को मनवाया नहीं जा सकता। व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर है किसी बात को मानना या न मानना और वही उसके व्यवहार की नियंता बनी हुई है। त्याग का प्रभाव सावध योग के त्याग का अर्थ है-व्यक्त इच्छा का त्याग। 'मैं किसी प्राणी की हत्या नहीं करूंगा' यह एक ऐच्छिक संकल्प है। मैं हिंसा नहीं करूंगा' इसका अर्थ है-मैं हिंसात्मक प्रवृत्ति नहीं करूंगा। इस संकल्प से हिंसात्मक प्रवृत्ति का नियमन हो गया। हम चिन्तन करें-इस संकल्प का प्रभाव कहां पड़ा? इसका परिणाम क्या होगा? गहराई में जाने पर समाधान मिलेगा-इसका प्रभाव पड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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