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इच्छा हु आगाससमा अणंतिया
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रश्न उभरते रहते हैं, जिज्ञासाएं जागती हैं, संदेह पैदा हो जाते हैं। आज एक प्रश्न का समाधान मिला किन्तु कल नया प्रश्न पैदा नहीं होगा, यह नहीं कहा जा सकता। एक संदेह का निवर्तन होता है, दूसरा संदेह उत्पन्न हो जाता है। जब संदेह, कुतूहल और जिज्ञासा बार-बार उभरती है तब चिंतन का विकास होता है। शिष्य के मन में एक अन्तर्द्वन्द्व पैदा हो गया। उसने आचार्य से निवेदन किया-'गुरुदेव! मैं मुनि बना। मैंने संकल्प किया-करेमि भंते! सामाइयं, सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि। आपने प्रत्याख्यान करवाया सर्व सावध योग का। मुनिजन कह रहे हैं-सर्वसावध योग के त्याग से व्रत संवर निष्पन्न हुआ। यह कैसे हो सकता है? सावध योग के त्याग और व्रत संवर में संगति कहां है? योग का अर्थ है प्रवृत्ति। मन, वचन और शरीर की प्रवृत्ति का नाम है योग। इनकी सावध प्रवृत्ति के प्रत्याख्यान से व्रत संवर कैसे निष्पन्न होगा? प्रवृत्ति का व्रत से क्या संबंध है?'
आचार्य ने कहा-'वत्स! तम अभी रहस्य को पकड़ नहीं पाए हो। व्यक्ति के भीतर दो इच्छाएं है-व्यक्त इच्छा और अव्यक्त इच्छा। हमारे सारे व्यवहार का प्रवर्तन कौन कर रहा है? हमारी प्रवृत्ति का संचालन कौन कर रहा है? हमारे व्यवहार का निर्धारण किसके द्वारा हो रहा है? मैं यह व्यवहार करूं
और यह व्यवहार न करूं, मैं यह प्रवृत्ति करूं और यह प्रवृत्ति न करूं, इनका नियामक कौन है? इस पर ध्यान केन्द्रित करना जरूरी है।'
ऐसा ही प्रश्न गीता में भी चर्चित हुआ है। अर्जुन के मन में प्रश्न उठा-पाप का प्रवर्तन कौन कर रहा हैं? श्री कृष्ण ने कहा
काम एषः क्रोध एषः रजोमोहसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा, विद्भयेनमिह वैरिणम् ।। मूल प्रवर्तक है अव्यक्त इच्छा।
हमारा सारा व्यवहार अव्यक्त इच्छा के द्वारा प्रवर्तित है। मनोविज्ञान में इच्छा को दो भागों में बांटा गया-अव्यक्त इच्छा और व्यक्त इच्छा। सारा प्रवर्तन अव्यक्त इच्छा के द्वारा हो रहा है, उसी का नाम है अविरति। अविरति आश्रव व्यक्ति की आन्तरिक इच्छा है। भीतर में यह अव्यक्त रूप से प्रतिष्ठित है और सारे व्यवहार को संचालित कर रही है। हमारी स्थूल प्रवृत्ति व्यक्त इच्छा से संचालित है। एक व्यक्ति अंगुली को हिला सकता है, स्थिर कर सकता हैं। उसे टेढ़ी और सीधी कर सकता है। शरीरशास्त्र के अनुसार मुख्य कार्यकारी तंत्र दो हैं-स्वतःचालित तंत्र और इच्छाचालित तंत्र। एक आदमी सीधा
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