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गृहस्थ जीवन का आकर्षण क्यों?
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बाधाएं हैं। आज तक कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ है, जिसने सांसारिक भोगों को निर्विघ्नता से भोगा हो। तीसरी बात है—'न य दीहमाउं'-आयुष्य बहुत छोटा है, संक्षिप्त है। इस छोटे से जीवन को भोगों में बरबाद करना उचित नहीं है। इसलिए घर में रहना हमें पसन्द नहीं है, स्वीकार नहीं है। गृहत्याग के ये तीन कारण बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। अशाश्वतता, बहुविघ्नता और आयुष्य की अल्पता
असासयं ददृढ़ इमं विहार, बहु अन्तरायं न य दीहमाउं। तम्हा गिहसि न रई लहामो, आमंतयामो चरिस्सामु मोणं।।
वासुदेव कृष्ण ने थावच्चा पुत्र से कहा-तुम अभी दीक्षित मत बनो। गृहवास को भोग कर दीक्षित हो जाना।
थावच्चा पुत्र ने कहा--महाराज! यदि आप दो बातों का आश्वासन दें तो मैं दीक्षा नहीं लूंगा। पहली बात है-मैं कभी मरूंगा नहीं। दूसरी बात है-मैं कभी बीमार नहीं बनूंगा। अमृतत्व और आरोग्य-इन दो बातों का आश्वासन दें।
कभी-कभी छोटी अवस्था वाला भी प्रौढ़ बात कह जाता है, गंभीर चिंतन दे देता है। इस गंभीर प्रश्न को सुन कर वासुदेव स्तब्ध रह गए।
वासुदेव कृष्ण ने कहा-मैं तुम्हें राज्य दे सकता हूं, राजा बना सकता हूं, धनवान् बना सकता हूं किन्तु अमर बनाना मेरे वश की बात नहीं है।
थावच्चा पुत्र ने कहा-मेरा भी घर में रहना सम्भव नहीं है।
जिस व्यक्ति में यह अमृतत्व की भावना, शाश्वत की भावना जाग जाती है, जिसकी विवेक चेतना प्रबुद्ध हो जाती है उसका घर के प्रति आकर्षण हो नहीं सकता। जैन, वैदिक और बौद्ध-तीनों धाराओं में ऐसी हजारों घटनाएं घटी हैं। जिनमें विवेक चेतना जाग जाती है, उनका घर में रहना भारी हो जाता है।
जम्बूकुमार की घटना विश्रुत है। आज लोग दहेज के नाम पर बहुत लुभावने सपने देखते हैं। वे समझते हैं-दहेज बहुत आ गया तो निहाल हो गए। दूसरों की रोटियों पर आकर्षक सपना देखना अत्यन्त विचित्र लगता है। किसी व्यक्ति को अपने लड़के की शादी में पांच-दस लाख का दहेज मिल जाता है तो वह मानता है-सब कुछ मिल गया। यदि जंबूकुमार को जितना दहेज मिला था उसे सुनें तो मुंह में पानी आ जाए। जम्बूकुमार को निन्यानवें करोड़ सोनये दहेज में मिले थे। आज किसी आदमी को इतना मिल जाए तो वह सीधा अरबपति बन जाए। उस समय निन्यानवें करोड़ सोनयों का मिलना महान् घटना थी। सामान्य आदमी इन रुपयों के भार से दब जाए किन्तु जम्बूकुमार के मानस में कोई प्रकंपन नहीं हुआ। उसकी आकर्षण की दिशा बदल चुकी थी। इतना बड़ा दहेज और आठ नवयौवना कन्याएं, किन्त जम्बुकमार का उनसे कोई लगाव नहीं। सुहागरात के दिन जम्बूकुमार कहता है-मैं दीक्षा लूंगा। आठों नवयौवनाएं उसे रोकने का प्रयत्न कर रही है। जम्बूकुमार में कोई विचलन पैदा नहीं हुई। वह सूर्योदय होते ही विशाल परिकर के साथ मुनि बन गया। विवेक चेतना : अविवेक चेतना
___क्या ऐसा होना सम्भव है? क्या यह अनहोनी बात नहीं है? आठ
नवयौवना कन्याएं और अपार दहेज सामने प्रस्तुत है, उसके प्रति किंचित भी Jain Education International For Private & Personal Use Only
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