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________________ ११० महावीर का पुनर्जन्म परिणाम सुखद होना चहिए कुछ लोग घर को छोड़ना नहीं चाहते और कुछ लोग ऐसे बन जाते हैं तो घर में रहना नहीं चाहते। उनके लिए घर में एक पल रहना भी भारी होता है । ऐसा क्यों होता है? इसका एक कारण बताया गया - जब तक पुण्य का भोग है तब तक विवेक चेतना नहीं जागती । प्रवृत्ति काल में पुण्य का भोग सुखद हो सकता है किन्तु वह परिणाम काल में दुःखद हो जाता है। एक अविवेकी आदमी के लिए पाप का परिणाम दुःखद होता है और पुण्य का परिणाम सुखद । जिसकी विवेक चेतना जाग जाती है, उसके लिए पुण्य का परिणाम और पाप का परिणाम — दोनों दुःखद बन जाते हैं । यही बात उत्तराध्ययन में कही गई है - चक्रवर्ती के बहुत बड़ा साम्राज्य होता है, सुख भोग के प्रचुरतम साधन होते हैं फिर भी वे दुःख - रूप हैं। क्योंकि जिसका परिणाम सुखद नहीं होता, वह वास्तव में दुःखद ही होता है । मनुष्य चीनी खाता है । उसे चीनी खाने में मीठी लगती है । अगर वह खाने में मीठी नहीं लगती हो उसे कौन खाता ? यह सफेद दानेदार चीनी दीखने में सुन्दर और खाने में स्वादिष्ट लगती है, किन्तु इसका परिणाम क्या होता है? डॉक्टर कहते हैं- एसिडिटी बढ़ेगी। आजकल एसिडिटी की बीमारी बहुत चल रही है। इस अम्लता की बीमारी में चीनी का मुख्य हिस्सा है । चीनी खाने में मीठी है किंतु परिणाम में अम्ल है। आंवला खाने में कसैला या खट्टा लगेगा पर वह परिणाम में मधुर है । आयुर्वेद का कथन है- कुछ पदार्थ खाने में मधुर होते हैं, परिणाम में मधुर नहीं होते। कुछ पदार्थ खाने में मधुर नहीं होते, पर उनका परिणाम मधुर होता है। भारतीय चिन्तन और दर्शन की धारा में उसका मूल्य अधिक माना गया जो परिणाम में सुखद होता है । उसका मूल्य बहुत कम माना गया, जो प्रवृत्ति काल में सुखद होता है। आगम का प्रसिद्ध सूक्त है - ' खणमेत्त सोक्खा बहुकाल दुक्खा' - सांसारिक भोग क्षण भर के लिए सुख देते हैं किन्तु बहुत काल के लिए दुःख देने वाले हैं इसीलिए चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त का आमंत्रण चित्त मुनि ने स्वीकार नहीं किया। भृगुपुत्रों की घटना भी यही संकेत देती है । पिता पुत्रों से कह रहा है - गृहवास मत छोड़ो, घर को मत छोड़ो। पिता वृद्ध था और पुत्र बहुत छोटी आयु में थे। उलटी बात हो रही थी । लोग कहते है- जब व्यक्ति बूढ़ा होता है, उसकी आकांक्षा कम हो जाती है। सचाई यह है - जैसे-जैसे व्यक्ति बूढ़ा होता है, उसकी आकांक्षा बढती चली जाती है, मोह सघन बनता चला जाता है। वह सोचता है मौत निकट आने वाली है, जितना भोग सकूं, भोग लूं, फिर यह सब साथ चलने वाला नहीं है । सारा का सारा यहीं धरा रह जाएगा। उसकी लालसा प्रबल हो जाती है । संन्यास के तीन हेतु भृगु ने अपने पुत्रों से पूछा - 'घर क्यों छोड़ रहे हो?' पिता के इस प्रश्न के उत्तर में पुत्र बोले- पिताजी ! पहली बात है - ' असासयं'– यह गृहवास अशाश्वत है । एक दिन इसे छोड़कर चले जाना है। इसे आपको भी छोड़ना है, हमें भी छोड़ना है । दूसरी बात है - 'बहुअन्तरायम्' - सांसारिक भोग में बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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