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गृहस्थ जीवन का आकर्षण क्यों?
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तब तक व्यक्ति को लगता है, घर में रहना ही सुख है। घर के बाहर दुःख ही दुःख है। जब कोई साधु बनता है, घरवाले उसके सामने विशाल दुःखों का प्रदर्शन करते हैं, दुःखों का अंबार-सा लगा देते है।
मृगापुत्र ने माता-पिता के सामने मुनि बनने का संकल्प व्यक्त किया। उसे विचलित करने के लिए माता-पिता ने मुनि-जीवन के कष्टों की गाथा गाई। यदि उसका मानस थोड़ा-सा भी कच्चा होता तो वह साधु बनने का नाम भी नहीं लेता। आज भी वही बात चल रही है। कोई व्यक्ति मुनि बनता है तो उसे बहुत दुःख दिखाए जाते हैं। ऐसा लगता है-मानो गृहस्थ में ही सातों सुख हैं। ‘सातों सुख' यह एक बहुत प्रचलित शब्द है। इसका तात्पर्य है-सब प्रकार के सख हैं. कोई दःख है ही नहीं। सारा द:ख साध जीवन में ही इकट्टा जब तक इन्द्रियों की प्रधानता रहेगी, मन की चंचलता प्रबल होगी, कषायों का रंगीन चश्मा हमारी आंखों पर चढ़ा रहेगा तब तक यह चिन्तनधारा बनी रहेगी। प्रभाव रंगों का
यह दुनिया इकरंगी नही हैं। इसमें नाना रंग हैं। जिस बगीचे में केवल एक रंग के फूल होते हैं, वह बगीचा जनता को अच्छा नहीं लगता। यह दुनिया बहरंगी है. इसमें नाना प्रकार के फल खिलते हैं और वे नाना प्रकार के रंगों से रंजित हैं। इसमें लाल रंग भी है, नीला रंग भी है। अगर लाल रंग नहीं होता तो सारे व्यक्ति सुस्त हो जाते, चुस्ती का कोई काम ही नहीं होता, सब आलसी, अकर्मण्य, निठल्ले बन जाते, सारे दिन पड़े रहते, उठने का कोई नाम ही नहीं लेता। हमारे शरीर में लाल रंग है, इसलिए सक्रियता है, स्फूर्ति है। रूस में एक प्रयोग किया गया। भार ढोने वाले कुछ मजदूरों का चयन किया गया। लाल रंग के थैलों में औसत से अधिक सामान भरा गया। उसे लाल रंग के कमरों से उठाना था। मजदूरों ने मात्रा से अधिक सामान को स्फूर्ति, तत्परता और उत्साह से उठा लिया। उन्हें भार का कुछ पता ही नहीं चला। वही प्रयोग दूसरे स्थान पर किया गया। नीले रंग का कमरा और नीले रंग के थैले में सामान। मजदूरों का उत्साह मंद पड़ गया, उनकी भार उठाने की क्षमता में कमी आ गई, वे सुस्त हो गए।
हमारे भीतर लाल रंग है इसलिए हम बहुत सक्रिय हैं। यदि व्यक्ति के भीतर केवल लाल रंग ही होता तो वह दिन भर क्रोध से भरा रहता, निरन्तर लड़ाकू बना रहता। किन्तु व्यक्ति के भीतर नीला रंग भी है। वह लाल रंग को दबा रहा है, शांत कर रहा है। इसलिए आदमी समझदारी से काम ले रहा है, गुस्से को शांत कर लेता है। कभी लाल रंग प्रधान बन जाता है और कभी नीला रंग, कभी सफेद रंग या हरा रंग उभर आता है। रंग की प्रधानता के आधार पर व्यक्ति का व्यवहार एवं स्वभाव बनता है। प्रत्येक व्यक्ति में एक ही प्रकार का रंग नहीं होता। वह बदलता रहता है, उसमें कभी लाल मुख्य हो जाता है, कभी हरा और कभी नीला मुख्य हो जाता है। जब नमि राजर्षि ने मुनि बनने का संकल्प किया तब उनके नीले और हरे रंग का उत्कर्ष रहा होगा। रंग न केवल
व्यवहार को किन्तु समग्र जीवन को प्रभावित करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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