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________________ आत्मना युद्धस्व १०३ ००० दिशा में जा रहा था, उसका उन्नयन हो गया, उदात्तीकरण हो गया। बुराई से बचने के लिए वृत्ति का रूपांतरण करना, उदात्तीकरण है। आत्मयुद्ध : अध्यात्म के सूत्र बुराई से बचने का मतलब है अपने आप से लड़ना, अपने आपसे संघर्ष करना, युद्ध करना। अध्यात्म में बुराई से निवृत्त होने के अनेक उपाय निर्दिष्ट हैं संकल्पः शमनं, ज्ञातृद्रष्टभावविभावनम् । स्मरणं प्रतिक्रमणं, युद्ध पंचविधं स्मृतम् ।। आत्मयुद्ध के पांच प्रकार हैंसंकल्प ० स्मरण ० शमन ० प्रतिक्रमण ज्ञाता-द्रष्टा भाव आत्मयुद्ध का पहला प्रकार है-संकल्प। संकल्प का प्रयोग करना यानी अपनी संकल्प शक्ति को बढ़ा लेना, जिससे व्यक्ति इन्द्रियों और संवेगों के साथ लड़ सके, कषायों के साथ युद्ध कर सके। ‘इयाणिं नो' अब नहीं करूंगा, यह संकल्प आत्म-युद्ध का पहला अस्त्र है। जिस व्यक्ति को यह अस्त्र प्राप्त होता है, वह अपने आपको बचा सकता है। __ आत्मयुद्ध का दूसरा प्रकार है-शमन करना। जैसे मनोविज्ञान में दो प्रक्रियाएं निर्दिष्ट हैं वैसे ही अध्यात्म के क्षेत्र में भी दो प्रक्रियाएं हैं-एक उपशमन की प्रक्रिया और दूसरी क्षयीकरण की प्रक्रिया। मनोविज्ञान में दबाने की प्रक्रिया बतलाई गई है। अध्यात्म के क्षेत्र में भी दबाने की प्रक्रिया मान्य है। किसी वृत्ति का एक साथ क्षय हो जाए, यह जरूरी नहीं है। उसका क्षय न हो तो कम से कम उसे खुला मत छोड़ो, उसका नियंत्रण करो, दबाओ। दबाने से भी वृत्ति में बडा अन्तर आ सकता है। एक राजा के मन में एक विकल्प उठा। उसने राज्यसभा में घोषणा की-जो व्यक्ति बकरे को तृप्त कर देगा, उसे पुरस्कृत किया जाएगा। बिलकुल नई घोषणा थी। बकरा कभी तृप्त नहीं होता। उसे भरपेट खिला दिया जाए, दिन भर खिलाया जाए किन्तु वह तृप्त नहीं होगा। ज्योंहि उसके सामने खाने की सामग्री रखी जाएगी, वह खाने लग जाएगा। पुरस्कार की बात से प्रत्येक व्यक्ति के मन में लार टपक जाती है। एक व्यक्ति ने बकरे को खूब खिलाया, पिलाया, उसे तृप्त कर दिया। वह राजा के सामने प्रस्तुत हुआ। उसने कहा-मेरा बकरा बिल्कुल तृप्त है। बकरे को लाया गया। राजा ने कर्मचारियों को आदेश दिया–चारा लाओ। चारा बकरे के सामने रखा गया। बकरे ने तत्काल चारे में मुंह डाल दिया, वह खाने लग गया। राजा ने कहा-यह तो तृप्त नहीं है। कई व्यक्ति आए, असफल होकर चले गए। तीन दिन बाद एक आदमी आया। उसने कहा-मेरा बकरा बिलकुल तृप्त है। राजा ने उसे बुलाया। बकरे के सामने चारा रखा गया पर वह बिलकुल नहीं खा रहा है। राजा को आश्चर्य हुआ—यह कैसे हुआ! बकरे के सामने फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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