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________________ १०२ महावीर का पुनर्जन्म बोले-'तुम शराब पीना नहीं छोड़ सकते, जुआ नहीं छोड़ सकते, वेश्यागमन नहीं छोड़ सकते पर एक बात तो मान सकते हो।' 'आप क्या कहना चाहते हैं?" 'क्या तुम झूठ बोलना छोड़ सकते हो?' 'हां, यह मैं कर सकता हूं।' मुनि ने लड़के को झूठ बोलने का त्याग करवा दिया। चाबी हाथ में आ गई। । दूसरा दिन! प्रातः काल ही वह तैयार होकर शराब पीने के लिए जाने लगा। पिता ने पूछा-'कहां जा रहे हो?" वह उलझन में फंस गया। झूठ बोलना नहीं था। उसने संकोच के साथ कहा- शराब पीने जा रहा हूं?' 'तुम शराब पीते हो?' पुत्र कुछ बोल नहीं सका। वह चुपचाप वापस मुड़ गया। दोपहर का समय। वह जुआ खेलने जाने लगा। मां ने कहा-'कहां जा रहा है?' उसके सामने पुनः समस्या पैदा हो गई। क्या कहे? वह जुआ खेलने नहीं जा सका। संध्या का समय हुआ। उसने वेश्या के घर जाने की तैयारी की। बहन ने पूछ लिया-'कहां जा रहे हो?' वह फिर मुसीबत में फंस गया। उसका मन लज्जा से भर गया। वेश्यागमन बंद हो गया। उसकी वृत्तियां नहीं छूटी। ऊपर से निंयत्रण आया, वृत्तियों का दमन हो गया। वे धीरे-धीरे अवचेतन में चली गई। बाहरी तौर पर सारी बुराइयां बंद हो गई। बुराइयों से लड़ने का यह एक प्रकार है-अवदमन। यह प्रकार बहुत अच्छा नहीं है किन्तु कभी-कभी अच्छा भी होता है। शमन __ मनोविज्ञान की भाषा में आत्मयुद्ध का दूसरा प्रकार है-शमन-सप्रेशन । मनुष्य में थोड़ा विवेक जाग जाता है-यह काम करना अच्छा नहीं है, जुआ खेलना अच्छा नहीं है। मैंने पढ़ा है-बहुत काम-वासना से भयंकर बीमारियां पैदा हो जाती हैं। इस प्रकार का विचार मनुष्य के मानस में उपजता है और वह उस बुराई से अपना बचाव करता है। अपने बचाव के लिए, आत्म-रक्षा के लिए इस प्रकार की मनोरचना की निर्मिति शमन-सप्रेशन है। उदात्तीकरण __आत्मयुद्ध का तीसरा प्रकार है-उन्नयन-उदात्तीकरण, एक वृत्ति को उदात्त बना लेना। मन बार-बार बुरे विचारों में जा रहा था, बुरी भावनाएं जन्म ले रही थी। एक आलंबन मिला स्वाध्याय का। व्यक्ति ने संकल्प किया–प्रतिदिन पांच घंटा स्वाध्याय में लगाना है। इस सूत्र को पकड़कर वह स्वाध्याय में लग गया। दिन भर उठने वाले बुरे विचार, बुरी कल्पनाएं बंद हो गई। जो मन बुरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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