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________________ आत्मना युद्धस्व १०१ व्याख्या में मनोविज्ञान आज अध्यात्म का पूरक एवं सहायक बनता है। यह स्वीकार करना चाहिए-आज चेतना के जगत् में प्रवेश करने का संसार को जो अवसर मिला है, वह मनोवैज्ञानिकों के द्वारा मिला है, किसी धार्मिक व्यक्ति के द्वारा नहीं। यह आश्चर्य की बात होते हुए भी सच है। मनोरचना का एक प्रकार : अवदमन मनोविज्ञान में मनोरचना के अनेक प्रकार बतलाए गए हैं। इनमें तीन प्रमुख है • अवदमन (रिप्रेशन) • शमन (सप्रेशन) • उन्नयन (सब्लिमेशन) मनोरचना का पहला प्रकार है-अवदमन। एक सामाजिक प्राणी हर कोई काम नहीं कर सकता। समाज में रहने वाला, सामाजिक जीवन जीने वाला व्यक्ति चाहे जैसा नहीं कर सकता। व्यक्ति के मन में बहुत सारी तरंगें पैदा होती हैं, अनेक प्रकार की कल्पनाएं और विचार पैदा होत हैं किन्तु जो मन में आता है, उसे वह करना नहीं है। व्यक्ति के मन में जो आए उसे वह करता चला जाए तो वह सामाजिक दृष्टि से पागल कहलाएगा। सामाजिक व्यक्ति में सहज नियंत्रण होता है। समाज का मतलब है नियंत्रण। समाज बना, साथ-साथ नियंत्रण ने भी जन्म लिया। एक व्यक्ति कुलीन परिवार का है, उस परिवार में शराब को हेय माना जाता है। व्यक्ति के मन में विचार आया-मुझे शराब पीना है। मन में यह भाव जन्म गया किन्तु वह शराब पी नहीं सकता। वह सोचता है-घर का अमुक सदस्य देख रहा है, अमुक व्यक्ति देख रहा हैं इसलिए शराब पीना उचित नहीं है। मन में जो भाव जगा, आकांक्षा पैदा हुई, वह पूरी नहीं हुई। वह अकेला नहीं था, उसके साथ दूसरा व्यक्ति था इसलिए उसे अपनी आकांक्षा को दबाना पड़ा। उसकी आकांक्षा समाप्त नहीं हुई। वह दमित भावना, दमित आकांक्षा स्थूल चेतना से हटकर अवचेतन जगत् में चली जाती है, अवदमित हो जाती है। यह है अबदमन। एक वृत्ति का अवदमन हो गया, इसका मतलब है-वह उस समय उस बुराई से बच गया। बचने का निमित्त चाहे कुछ भी बना किन्तु बचाव हो गया। नियंत्रण : एक उपाय एक लड़का बुराई में चला गया। पिता ने बहुत उपाय किए किन्तु कोई परिवर्तन नहीं आया। एक बार गांव में एक मुनि आए। पिता अपने लड़के को मुनि के पास ले गया। उसने सारी बात मुनि को बता दी। मुनि ने लड़के से कहा-'तुम बुराइयां छोड़ दो।' लड़का बोला- 'मैं असमर्थ हूं। मैं नहीं छोड़ सकता।' ___मुनि बड़े मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने सारी स्थिति को देखकर सोचा-इसे ज्यादा कहना अच्छा नहीं है और यह सीधे रास्ते से बुराइयां नहीं छोड़ेगा। मुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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