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महावीर का पुनर्जन्म
चला गया। इतिहासवेत्ता जानते हैं - महाभारत से पहले जो हिन्दुस्तान था, वह बहुत समृद्ध हिन्दुस्तान था । विद्या, बुद्धि, वैभव आदि से समृद्ध था, मंत्र, यंत्र और तंत्र से सम्पन्न था। महाभारत के बाद हिन्दुस्तान का नक्शा बदल गया । महाभारत से पूर्व और महाभारत के बाद के हिन्दुस्तान में आकाश-पाताल जितना अन्तर आ गया। महाभारत युद्ध से अनेक विद्याएं लुप्त हो गईं, बड़े-बड़े विद्याधर, अनेक विद्याओं के मर्मज्ञ मनुष्य समाप्त हो गए। आज अणुबम बहुत खतरनाक माना जाता है। उस समय ब्रह्मास्त्र कम खतरनाक नहीं था। एक प्रकार से मानना चाहिए - महाभारत के युद्ध में शक्तियों का लोप ही नहीं हुआ, हिन्दुस्तान की आत्मा भी चली गई । युद्ध के बाद दुनिया में सुख नहीं बढ़ता, दुःख बढ़ता है। यह एक सचाई है।
युद्ध के दो प्रकार
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राजर्षि ने आत्मयुद्ध का संकल्प किया, अपने आप से युद्ध करने का संकल्प किया। युद्ध के दो प्रकार बन गए - बाह्ययुद्ध और आत्मयुद्ध । बाह्य युद्ध में दूसरों से लड़ा जाता है। आत्मयुद्ध में अपनी आत्मा से लड़ा जाता है । आत्मा का आत्मा से युद्ध आत्मयुद्ध है । प्रश्न प्रस्तुत हुआ-अपने आप से लड़ो, इसका मतलब है, एक वह आत्मा है, जिससे युद्ध करना है और एक वह आत्मा है जो युद्ध करने वाली है। एक को पराजित करना है और एक को विजेता बनाना है । ये दो आत्माएं कहां से आ गई? उत्तर दिया गया - प्राणी के भीतर दो नहीं, सौ आत्माएं बैठी हैं। आत्मा कभी अकेली बनी ही नहीं। मनुष्य के इस शरीर के भीतर अनेक आत्माएं हैं। उनमें एक आत्मा को विजेता बनाना है और शेष को पराजित करना है। एक पराजित करने वाली आत्मा है, एक पराजित होने वाली आत्मा है।
आगम साहित्य में आत्मा का प्रयोग अनेक अर्थों में होता है। आत्मा एक अर्थ है- शरीर । आत्मा का एक अर्थ है- इन्द्रियां । आत्मा का एक अर्थ है - मन । आत्मा का एक अर्थ है- चेतना । आत्मयुद्ध के प्रसंग में इन्द्रिय, मन और कषाय आत्मा से लड़ना है। चार कषाय, पांच इन्द्रियां और मन - इन दस का समूह है - आत्मा । यह एक यूनिट है, इकाई है। आत्मयुद्ध में इस आत्मा को पराजित करना है और ज्ञाता द्रष्टा आत्मा को विजयी बनाना है। यह 'आत्मना युद्धस्व' की रूपरेखा है ।
आश्चर्यजनक सच
'कैसे लड़ें' इस प्रश्न पर अध्यात्म और मनोविज्ञान- इन दो दृष्टियों से विचार करना अपेक्षित है । अध्यात्म के आचार्यों ने चेतना के क्षेत्र में सूक्ष्म जगत् के अनेक रहस्यों का प्रतिपादन किया था किन्तु वे बहुत संदिग्ध माने जाते थे । सिगमंड फ्रायड, जो मनोविज्ञान के प्रवर्तकों में प्रमुख हैं, ने चेतना के सूक्ष्म स्तरों का विश्लेषण किया। उससे अध्यात्म को एक नया प्रकाश मिला, नया बल मिला । फ्रायड के बाद मनोविज्ञान की एक परम्परा चल पड़ी। मनोविज्ञान ने चेतना के अनेक सूक्ष्म स्तरों की व्याख्या की। अगर आज कोई आध्यात्मिक मनोविज्ञान को नहीं पढ़ता है तो एक कमी महसूस करनी चाहिए। चेतना के सूक्ष्म स्तरों की
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