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________________ १३ जो रास्ते में घर बनाता है विश्व की प्रमुख समस्याओं का आकलन किया जाए तो तीन मुख्य समस्याएं सामने आएंगी-रोटी, कपड़ा और मकान। ये प्राथमिक समस्याएं हैं-खाने को रोटी, पहनने को कपड़ा और रहने को मकान चाहिए। आज संसार की समस्त सरकारों के सामने ये तीन बड़ी समस्याएं हैं। इनकी व्यवस्था करना प्रत्येक सरकार का दायित्व होता है। आवास की व्यवस्था के लिए बहुत बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई जाती हैं। कोई भी आदमी ऐसा न रहे, जिसका अपना घर न हो, हर व्यक्ति को अपना घर मिले। घर जीवन का आधार होता है। इस आधार पर संसार भर के मनुष्यों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है-गृहस्थ और अनगार। इन दो वर्गों में सारे लोग समा जाएंगे। एक वर्ग में गृहस्थ हैं, जो घर में रहने वाले हैं। दूसरे वर्ग में अनगार हैं, जिनका अपना कोई घर नहीं है। अनगार शब्द मुनित्व या संन्यास का वाचक शब्द है। घर के आधार पर ये वर्ग बने हैं-एक ने घर को त्याग दिया और एक ने घर को अपना बना लिया। जो व्यक्ति समझदार होता है और जिसके पास पैसा होता है, वह घर बनाने की बात सोचता है। उसके लिए ऐसा करना आवश्यक होता है। वह आखिर रहे कहां? व्यक्ति खुले आकाश में कैसे रहे? वर्षा आती है, धूप आती है, आंधिया और लूएं चलती हैं। व्यक्ति इनसे कैसे बचे? खाने को रोटी चाहिए। बाजार से खरीद कर अनाज लाए तो उसे कहां रखे। रखने के लिए भी स्थान चाहिए। आदमी पशु और पक्षी जैसा अकिंचन नहीं है। उन्हें रखने की कोई खास जरूरत नहीं होती। घर बनाने की संज्ञा पशु-पक्षियों में भी है। पशु भी अपने घर बनाते हैं, मांद बनाते हैं। चूहे भी अपना बिल बनाते हैं। बहुत सारे पक्षी भी अपना घर बनाते हैं। बयां का घर बहुत सुन्दर होता है। आकाश में उड़ने वाले पक्षी और धरती पर रहने वाले पशु भी अपना घर बनाते है। श्रृंखला समस्याओं की मुनि के लिए घर कोई समस्या नहीं है किन्तु गृहस्थ के लिए आवास का प्रबन्ध एक बड़ी समस्या है। उपाध्याय विनयविजयजी ने गृहस्थ की समस्याओं का सुन्दर आकलन किया है प्रथममशनपानप्राप्तिवांछा विहस्ताः तदनु वसनवेश्माऽलकृतिव्यग्रचित्ताः । परिणयनमपत्यावाप्तिमिष्टेन्द्रियाऽर्थान्, सततमभिलषन्तः स्वस्थतां क्वाऽश्नुवीरन् ।। www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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