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________________ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयाग यह होगा आत्मानुशासन। नाड़ियों के विषय में अनेक खोजें हुई थीं। पूरे शरीर में इतने केन्द्र हैं, इतनी नाड़ियां हैं, उन सबका विज्ञान है। अमुक नाड़ी को दबाने से अमुक बीमारी शांत होती है और अमुक नाड़ी दबाने से अमुक रोग शांत होता है। यह पूरा विज्ञान अनेक लोगों को ज्ञात था। भयंकर सिर दर्द है, कोहनी के ऊपर की नाड़ी को दबाओ, वह शांत हो जाएगा। पेट में दर्द है, रीढ़ की हड्डी को ऊपर से नीचे, पांच बार दबाते जाओ, पेट का दर्द देखते-देखते ठीक हो जाएगा। हमारे पैर के अंगूठों, एड़ी, पसलियों, घुटनों और रीढ़ की हड्डी में अनेक स्नायु हैं, नाड़ियां हैं, जिनका उपयोग कर पूरी चिकित्सा की जा सकती है। यह सारा विज्ञान आज भुला दिया गया। यह विज्ञान दस-बीस प्रतिशत कहीं-कहीं बचा है, शेष विस्मृति के गर्त में पड़ गया है। ___आत्मानुशासन कैसे होगा, जब शरीर का अनुशासन नहीं है, मन का अनुशासन नहीं है, वाणी का अनुशासन नहीं है? शरीर और मन : पारस्परिक प्रभाव शरीर में अनुशासन की व्यवस्था है। उसके मूल घटक हैं- रक्त का संचार, मांस का निर्माण, अस्थि का निर्माण और उसकी मजबूती। यदि हमारे शरीर में रक्त का संचार उचित ढंग से नहीं हो रहा है तो क्या शरीर का अनुशासन होगा? क्या आत्मानुशासन होगा? यदि शरीर में दूषित रक्त प्रवाहित हो तो वह रक्त मन को दूषित करेगा, मस्तिष्क में भी विकृति पैदा करेगा। यह सम्भव नहीं है कि उस व्यक्ति पर अनुशासन का कभी प्रभाव हो। जिसके शरीर की धातुएं स्वस्थ नहीं हैं, अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर रही हैं, आतें मलोत्सर्ग ठीक नहीं कर रही हैं, पक्वाशय ठीक पाचन नहीं कर रहा है, लीवर अपना अभिरंजक पित्त नहीं छोड़ रहा है, पेन्क्रियाज अपना काम नहीं कर रही है, फेफड़े और हृदय अपना काम नहीं कर रहे हैं तो हम कल्पना करें कि अनुशासन आएगा? अनुशासन आ नहीं सकता। उस व्यक्ति के मन में विकृतियां ही पैदा होंगी। आत्मानुशासन की सबसे पहली बात या नींव की ईंट है रक्त का ठीक संचार, शरीर की धातुओं का ठीक से कार्य करना। वह व्यवस्थित चलता है तो मन का अनुशासन हो सकता है। शरीर और मन परस्पर जुड़े हुए हैं। दोनों एक दूसरे को इतना प्रभावित करते हैं कि मन की स्वस्थता के लिए शरीर की स्वस्थता जरूरी है और शरीर की स्वस्थता के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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