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जीवन विज्ञान-शिक्षा की अनिवार्यता
अध्यात्म की शिक्षा का प्रश्न
अध्यात्म की शिक्षा आवश्यक है, पर निर्विवाद नहीं। बहुत लोग इसे आवश्यक नहीं मानते। एक प्रश्न सदा उपस्थित होता है कि मनुष्य को जो चाहिए- वह सब हमारी विद्यालयी शिक्षा से मिल जाता है फिर यह धर्म की शिक्षा, नैतिकता की शिक्षा या अध्यात्म की शिक्षा का भार क्यों लादा जाए? धर्म की जटिलता भी है। सब विचार समान नहीं हैं। प्रत्येक सम्प्रदाय की अपनी विचार-सारणी है, विचार शैली है और सिद्धांत भिन्न-भिन्न हैं, फिर एक विद्यार्थी पर इसका भार क्यों लादा जाए?
इस तर्क के आधार पर हमेशा अध्यात्म की शिक्षाओं को उपेक्षित किया गया। हमारी भूल वहां होती है जहां हम सम्प्रदाय और धर्म को, सम्प्रदाय और अध्यात्म को एक ही अर्थ में स्वीकार कर लेते हैं। तर्क से कोई न भी मानें किन्तु व्यवहार से कुछ ऐसा ही चल रहा है कि हमारी दृष्टि में धर्म या अध्यात्म सम्प्रदाय से भिन्न नहीं है। अध्यात्म का अर्थ
____ अध्यात्म का अर्थ है- राग-द्वेष-मुक्त चेतना। चेतना हमारे सामने है। इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति वर्तमान की चेतना को स्वीकारता है। प्रश्न होता है- अतीत की चेतना थी या नहीं? भविष्य में होगी या नहीं? इन दोनों को एक बार छोड़ दें, किन्तु जो वर्तमान की चेतना है वह राग-द्वेष से मुक्त रहे, यह अध्यात्म है। अध्यात्म का अर्थ है- प्रियता और अप्रियता के संवेदन से हटकर समता का अनुभव करना। प्रत्येक घटना और प्रवृत्ति में समता का अनुभव जागे, प्रियता और अप्रियता का संवेदन बंद हो। सामान्यतः हमारे जीवन में ये दो ही बातें चलती हैं। हम या तो किसी घटना को प्रियता की दृष्टि से देखते हैं या किसी घटना को अप्रियता की दृटि से देखते हैं। हमारा पक्षपात सदा होता है। जो लोग बहुत निष्पक्षता और तटस्थता
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