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________________ ३४ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग उन सबको जान रहा है, जिनको जानने की जरूरत शायद उतनी कभी नहीं रही होगी। हम इस तथ्य को निश्चित रूप से जानते हैं कि कोई भी एक आदमी सारी विद्याओं का ज्ञाता नहीं हो सकता। अपने पूरे जीवन में सारी विद्याएं नहीं जानी जा सकतीं। हमारी इस दुनिया में इतनी विद्याएं हैं कि जिनकी गिनती करना भी कठिन है । हजारों प्रकार के शिल्प हैं, हजारों कलाएं हैं, हजारों विद्याएं हैं। एक आदमी इन सबको कैसे जान सकता है ? एक आदमी हजारों के आधार पर जीता है। आज कोई आदमी रोटी खाता है, जीता है तो क्या वह अपने अकेले के बलबूते पर जीता है ? इसका उत्तर हां में नहीं दिया जा सकता । प्रत्येक व्यक्ति दूसरों के सहारे जीता है। एक-दो के सहारे नहीं, हजारों आदमियों के सहारे जीता है । खेती दूसरा करता है, अनाज उसे मिल जाता है । चीनी दूसरा बनाता है, चीनी उसे मिली जाती है। बीमारी होती है तो डॉक्टर के सहारे जीता है । मुकदमा लड़ना होता है तो वकील के सहारे लड़ता है । हिसाब करना होता है, तो हिसाब- परीक्षक के सहारे करता है । आदमी कितने सहारों से पलता है ! कितने सहारों से जीता है ! इस दुनिया में केवल अपने ही सहारे पलने वाला, जीने वाला कोई नहीं हो सकता। यदि ऐसा होता तो समाज कभी नहीं बनता । समाज इसीलिए बना कि व्यक्ति अकेला कभी जी नहीं सकता। समाज है, सहारा है, इसलिए वह जी रहा है । यह मानना होगा कि मनुष्य को अनेक विद्याओं की जरूरत होती है और शिक्षा - शास्त्रियों ने अनेक विद्याओं का विकास भी किया फिर भी प्रश्न उठता है- आज शिक्षा प्रणाली में कोई कमी है ? बार-बार यह स्वर क्यों उभरता है ? जो शिक्षाशास्त्री है, वे भी यह कहते हैं कि शिक्षा की पद्धति समुचित नहीं है । राजनेता भी यही कहते हैं पर वह समुचित या अच्छी क्यों नहीं है, यह कोई नहीं जानता । शिक्षा में क्या कमी है, उस कमी को कैसे पूरा किया जाए, इसे कोई नहीं जानता । इन पच्चीस-तीस वर्षों में शिक्षा से सम्बन्धित कितने आयोग बैठे, पर आज तक कोई समाधान नहीं मिला। यह शिक्षा जगत् की बहुत बड़ी समस्या है। इस समस्या में अध्यात्म भी जुड़ा है, ध्यान और साधना भी जुड़ी हुई है। अनुभव अधूरेपन का आज सबसे बड़ी कमी है, जो अनुभव में आ रही है, वह यह है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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