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________________ शिक्षा की समस्याएं ३३ जो गौण है, सहायक है, वह अपना पूरा आधिपत्य जमाए बैठा है । ज्ञाता मूल है। जानने वाला मूल है । यदि जानने वाला न हो इस दुनिया में तो पदार्थ पदार्थ रहेगा, उसमें कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आ पाएगा । सारे परिवर्तन ज्ञाता करता है । ज्ञाता है मनुष्य । सभी परिवर्तनों का घटक है मनुष्य । सारे परिवर्तन प्राणी करता है । इस स्थूल दुनिया का विकास प्राणी ने किया है। प्राणी चाहे छोटा हो या बड़ा, उसमें परिवर्तन की क्षमता होती है। प्राणी ने इस जगत् को दृश्य बनाया है । यह दृश्य सृष्टि प्राणियों की संरचना है। जितने पहाड़ बने हैं, वे प्राणियों द्वारा निर्मित हैं। पानी और अग्नि प्राणियों द्वारा निर्मित हैं। हवा प्राणियों के आधार पर चलती है। सारा वनस्पति जगत् प्राणियों की देन है। जो चल जगत् है, दो इन्द्रिय वाले प्राणियों से लेकर पांच इन्द्रियों वाले प्राणियों तक, वह इस दुनिया का निर्माता है। वे प्राणी ही सृष्टि की सर्जना कर रहे हैं। यदि ईश्वर को इस अर्थ में सृष्टि का कर्ता माना जाए तो वह गलत नहीं है। सृष्टि का कर्त्ता तो कोई न कोई है ही । बिना कर्ता कोई चीज कैसे बनेगी ? अन्तर इतना ही है कि वह कर्ता कोई एक शक्ति नहीं है, एक सत्ता नहीं है, किन्तु अनगिनत सत्ताएं और अनन्त शक्तियां हैं, जो हमारी सृष्टि का निर्माण करती हैं। यदि एक ज्ञाता न रहे, एक प्राणी न रहे, एक चेतन सत्ता न रहे तो फिर कोरा अंधकार ही अंधकार होगा, प्रकाश का प्रश्न ही नहीं उठेगा। प्रकाश की सारी परिकल्पना प्राणी ने की है। प्रकाश का सारा विकास प्राणी ने किया है । दुनिया में जो कुछ प्रकाश की किरणें हैं, वे सब प्राणियों की देन हैं। ज्ञाता से अज्ञात आश्चर्य इस बात का है कि चेतन सत्ता, प्राणी की सत्ता-या कहें कि हमारे जगत् की जो मूल सत्ता है, उसके विषय में हमारी कोई जानकारी नहीं है। अपने स्वयं के बारे में ज्ञाता के बारे में कोई जानकारी नहीं है और ज्ञेय के विषय में दुनिया भर की जानकारी है। यह इस सत्य का द्योतक है कि जो मूल व्यक्ति है वह बेचारा दर-दर का भिखारी बनकर भीख मांग रहा है और उसका चित्र, उसका प्रतिबिम्ब हजारों में बिक रहा है। बिम्ब रो रहा है, प्रतिबिम्ब हंस रहा है। ऐसा ही कुछ हो रहा है आज की शिक्षा जगत् की परिक्रमा में । वास्तविकता यह है कि जो मूल है, उसकी जानकारी सबसे पहले होनी चाहिए, पर वह बेचारा उपेक्षित-सा कहीं कोने में बैठा सिसक रहा है और जानने वाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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