SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शिक्षा की समस्याएं उस अवस्था में हम असहाय होते हैं, क्योंकि आज की शिक्षा से दिमाग में और-और तत्त्व तो भर दिए जाते हैं, किन्तु असहाय की स्थिति होने पर उससे लोहा लेने की बात नहीं सिखाई जाती। आदमी घुटने टेक देता है और नष्ट हो जाता है। यह कहा जा सकता है कि आज की शिक्षा-पद्धति ने आदमी को केवल भागना सिखाया है। जो लोग आज शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, वे सीखते हैं कि जो भी समस्या आए, उसका सामना मत करो, पलायन कर दो, भाग जाओ, घुटने टेक दो । जीवन विज्ञान : शक्ति का जागरण ध्यान जीवन विज्ञान की शिक्षा का अनिवार्य अंग है । जो व्यक्ति मन को शिक्षित करना जान लेता है, कठिनाइयों को झेलना सीख लेता है, परिस्थितियों में अड़िग खड़ा रहना सीख लेता है, घुटने नहीं टेकता, वह व्यक्ति यथार्थ में ध्यान का अधिकारी होता है। वही वास्तव में ध्यान कर सकता है, वही ध्यान में सफल हो सकता है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य शिक्षित कहलाता है और वह सर्वत्र आदर पाता है। वह आदरास्पद होता है। हमें इसके साथ यह भी जोड़ देना है कि ज्ञानी की अपेक्षा चरित्रवान् व्यक्ति अधिक आदरास्पद होता है । ज्ञानी के प्रति अंगुलियां उठ सकती हैं किन्तु चरित्रवान के प्रति सहजतया अंगुलियां नहीं उठतीं। उसके प्रति सहज आदर भाव होता है । ___हमारे समक्ष दो दिशाएं हैं । एक है ज्ञान की दिशा और दूसरी है चरित्र की दिशा। इन दोनों में महत्त्वपूर्ण है चरित्र का विकास । चरित्र का विकास जीवन-विज्ञान की शिक्षा के बिना संभव नहीं है । ध्यान और कुछ नहीं है । वह है अपने आपको जानना, अपने मन को शिक्षित करना, अपनी सहिष्णुता की शक्ति को बढ़ाना । हमारे भीतर सहन करने की अनन्त शक्ति विद्यमान है । उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते किन्तु वह सोयी पड़ी रहती है । जीवन विज्ञान उसे जगाने का उपक्रम है । जीवन विज्ञान : आज की अपेक्षा बाह्य जगत् और अन्तर जगत् में असंतुलन भी एक समस्या है । बाह्य जगत् और अन्तर जगत्- दोनों वास्तविक हैं। दोनों को स्वीकार करना है । व्यवहार को भी स्वीकार करना है और निश्चय को भी स्वीकार करना है। दोनों के बीच संतुलन स्थापित करना ही जीवन का विज्ञान है और यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy