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________________ ३० जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग पारदर्शी अवस्था प्राप्त होने पर पार की वस्तु देखी जा सकती है। अतीन्द्रिय-ज्ञान-चेतना का अर्थ है पार की वस्तु को प्रत्यक्ष देख लेना। पार की चेतना तब जागेगी जब पूरा शरीर चुम्बकीय-क्षेत्र बन जाएगा। .. ओकल्ट साइन्स के वैज्ञानिकों ने यह तथ्य प्रकट किया कि आदमी जब तक अपने शरीर के विशिष्ट केन्द्रों को चुम्बकीय-क्षेत्र नहीं बना लेता, एलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड नहीं बना लेता, तब तक उसमें पारदर्शन की क्षमता नहीं जाग सकती। चैतन्य केन्द्रों और चक्रों की सारी कल्पना का मूल उद्देश्य है-शरीर को चुम्बकीय-क्षेत्र बना लेना। सहिष्णुता और समभाव वृद्धि के प्रयोग,उपवास,आसन,प्राणायाम,आतापना,सर्दी-गर्मी को सहने का अभ्यास- इन सारी प्रक्रियाओं से शरीर के परमाणु चुम्बकीय-क्षेत्र बदल जाते हैं और वह क्षेत्र इतना पारदर्शी बन जाता है कि उस क्षेत्र से भीतर की चेतना बाहर झांक सकती है। जीवन विज्ञान : आत्म संयम का प्रशिक्षण जीवन विज्ञान की शिक्षा का तात्पर्य है-मन, वाणी और काया को शिक्षित करना। शरीर को शिक्षित करने का तात्पर्य है- एक ही आसन में लंबे समय तक बैठे रहने की क्षमता प्राप्त कर लेना, आसन-सिद्धि कर लेना। वाणी को शिक्षित करने का अर्थ है- मन में कितनी ही तरंगे उठे, पर बोलने की कोई धारा का नहीं होना। मन को शिक्षित करने का अर्थ है- अनर्गल स्मृति, कल्पना और चिन्तन से बचना। आज अंतरिक्ष की यात्राएं होने लगी हैं। अंतरिक्ष यात्री को योग का प्रशिक्षण दिया जाता है क्योंकि वहां उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जो व्यक्ति केवल प्रवृत्ति में होता है, वह व्यक्ति उन कठिनाइयों का सामना नहीं कर सकता। अंधेरे को सहन करना, अकेलेपन को सहन करना, अकेले में उदास न होना, पागल न होना, बहुत संयत रहना- ये सारी स्थितियां योग साधना के बिना संभव नहीं हो सकती, इसलिए योग का प्रशिक्षण देना अनिवार्य हो जाता है। क्या जीवन की यह दीर्घ यात्रा अन्तरिक्ष यात्रा से कम है? अन्तरिक्ष यात्रा में दस-बीस-पचास दिन लग सकते हैं, पर जन्म से मृत्यु तक की यात्रा, ७०-८० वर्ष की यात्रा, बहुत लंबी होती है। एक जीवन में हजारों अन्तरिक्ष यात्राएं समाप्त हो जाती हैं। इस जीवन यात्रा में कितनी कठिनाइयां आती हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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