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________________ २४ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग को खोलना चाहता है, अपनी चेतना को विस्तार देना चाहता है, उसके लिए यह आवश्यक है कि वह मन के होते हुए भी अमन की स्थिति का अनुभव करे। वाक् होते हुए भी अवाक् का अनुभव करे। जब भाषा और मन का प्रयोग रुकता है, तब चेतना का नया द्वार खुलता है। वर्तमान शिक्षा: जीवन की उपेक्षा मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जो शिक्षा प्राप्त करता है, शिक्षित होता है। दूसरे प्राणी शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते। पूरी मनुष्य जाति दो श्रेणियों में विभक्त है। जो मनुष्य भाषा पर अधिकार जमाए हुए है, जो कुछ विषयों को अपनी बुद्धि के भरोसे सौंप देता है, वह शिक्षित श्रेणी में आता है। जिसको भाषा पर कोई अधिकार नहीं मिला, जिसका बुद्धि-वैभव शून्य है, वह अशिक्षित श्रेणी में आता है। सब लोग शिक्षा को जरूरी मानते हैं और इसलिए मानते हैं। कि यदि समाज में रहना है, समाज में जीना है तो मनोविज्ञान का अध्ययन करना होगा, समाजशास्त्र का अध्ययन करना होगा। मनुष्य को भूख लगती है, प्यास लगती है, उसमें काम की वासना जागती है। इन सबकी पूर्ति के लिए आदमी को अनेक प्रयत्न करने पड़ते हैं। उसके लिए गणितशास्त्र और व्यापारशास्त्र का अध्ययन जरूरी है। विद्या की जितनी शाखाएं हैं, उन सबका अध्ययन आदमी इसलिए करता है, विशेषतः व्यावसायिक विद्याओं का, कि उसकी भूख मिट सके। इस आधार पर एक भाषा बन गई कि जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को पूरी करने में सहायक होने वाली विद्याओं का अध्ययन करता है वह शिक्षित होता है। ये सारी बातें शिक्षा की सीमा में आ गईं। अपने वारे में कुछ जानना जरूरी है, ऐसी धारणा सामाजिक जगत् में अभी तक नहीं बनी है। भीतर है बदलाव का बिन्दु आज सबसे बड़ी समस्या है उपादान और निमित्त की। आज का आदमी निमित्तों को बदल कर सब कुछ करना चाहता है। वह उपादान की ओर ध्यान ही नहीं देता। जब तक निमित्तों को बदलने की बात सामने रहेगी तब तक कोई न कोई कार्य आदमी के समक्ष रहेगा ही। एक निमित्त बदलता है, दूसरा सामने उपस्थित हो जाता है। फिर उसे बदलते हैं, तीसरा उभर आता है। इनका कहीं अन्त नहीं आता । उपादान को बदले बिना स्थायी बदलाव घटित नहीं होता । आज यह बात समझ में नहीं आ रही है। यही कारण है कि हजार प्रयत्न करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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