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________________ जीवन विज्ञान : आधार और प्रक्रिया १९ प्रकम्पनों का पता लगने लगता है कि कहां प्रकम्पन हो रहे हैं। प्रकम्पनों का पता एक साथ नहीं, धीरे-धीरे होने लगता है, फिर रसायनों की प्रक्रिया का ज्ञान होता है । अभ्यास जैसे-जैसे परिपक्व होता है, शरीर की अनेक गतिविधियों का पता लगने लग जाता है। यह है शरीर प्रेक्षा, शरीर - दर्शन । प्रत्यक्षीकरण चैतन्य केन्द्रों का तीसरा है चैतन्य - केन्द्र-दर्शन । हमारे शरीर में अनेक चैतन्य केन्द्र हैं। वैसे तो पूरा शरीर ही चैतन्य केन्द्रों से भरा पड़ा है किन्तु उपयोगिता के लिए प्रेक्षा ध्यान की पद्धति में तेरह चैतन्य केन्द्रों को महत्त्व दिया गया है। जब चैतन्य केन्द्रों को देखना शुरू करते हैं तब वे चैतन्य केन्द्र सक्रिय होने लग जाते हैं। चैतन्य केन्द्र सक्रिय हैं या निष्क्रिय, यह भी स्पष्ट ज्ञात हो जाता है । श्वास- दर्शन, शरीर - दर्शन और चैतन्य - केन्द्र-दर्शन- ये सारे प्रेक्षा प्रक्रिया के अंगभूत हैं। अनुप्रेक्षा दूसरातत्त्व है - अनुप्रेक्षा । अनुप्रेक्षा में चिंतन भी है, ध्वनि-प्रयोग भी है, भावना का प्रयोग भी है। यह एक प्रकार से आत्म सम्मोहन का प्रयोग है। कल्पना करें - किसी आदमी में नशे की आदत है, तम्बाकू पीता है, शराब पीता है, कोई गाली बकता है, गुस्सा करता है। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न आदतें होती हैं। अब उन आदतों को बदलना है। कैसे बदलें? बहुत सारे लोग आदतों को बदलने के लिए त्याग लेते हैं, संकल्प लेते हैं। और बहुत बार ऐसा होता है कि सुबह त्याग लिया, संकल्प लिया और शाम होते-होते टूट जाता है। बड़ी कठिनाई है। परिस्थिति आती है और त्याग टूट जाता है, क्योंकि वृत्तियां तो भीतर हैं। जिस वृत्ति को छोड़ने के लिए त्याग लिया उसका जब तक दबाव नहीं आता तब तक तो त्याग निभता है, जब दबाव आता है तब त्याग समाप्त हो जाता है। एक आदमी संकल्प करता है कि शराब नहीं पीऊंगा । किन्तु ठीक पीने का समय आता है, भीतर से मांग उभरती है। सारी संकल्प की बातें धरी रह जाती हैं और वह शराब पीने लग जाता हैं यह संकल्प की विफलता होती है तब आदतें नहीं बदलतीं। क्योंकि आदत काम कर रही है अवचेतन मन के माध्यम से और हम संकल्प कर रहे हैं, चेतन मन के माध्यम से। जब तक हमारी बात अवचेतन मन तक नहीं पहुंच जाएगी, तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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