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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग श्वास-दर्शन मन की स्थिरता के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है । मन में चंचलता कौन पैदा कर रहा है? मन तो पैदा नहीं कर रहा है।
आदमी के भीतर की वृत्तियां चंचलता पैदा कर रही हैं। जब-जब वृत्तियां जागती हैं, मन चंचल हो जाता है। चंचल होने में मन का क्या दोष है ? वह अपने आप में चंचल नहीं है, हमारी वृत्तियां उसे चंचल बना रही हैं। बहुत सारे लोग मन को पकड़ना चाहते हैं, मन को स्थिर करना चाहते हैं पर न भूतं न भविष्यति न हुआ है न होगा। मन की तुलना हम बिजली के पंखे से कर सकते हैं। जब स्विच ऑन होता है, बिजली का प्रवाह आता है और पंखा चलने लग जाता है, वह चंचल बन जाता है। जब स्विच ऑफ करते हैं, बिजली का प्रवाह रुकता है और पंखा भी रुक जाता है। इसी प्रकार यदि मन को स्थिर करना है तो भीतर की वृत्तियों के स्विच को ऑफ करना होगा। स्विच ऑफ होते ही मन रुक जाएगा, मन बिल्कुल शांत हो जाएगा।
वृत्तियों को शांत करने के लिए, स्विच ऑफ करने के लिए श्वास बहुत बड़ा माध्यम बनता है। जैसे बटन को दबाने के लिए हमारी अंगुली काम करती है वैसे ही वृत्तियों को शांत करने के लिए श्वास काम करता है श्वास के माध्यम से वृत्तियां शांत हो जाती हैं।
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प्रत्यक्षीकरण शरीर का
दूसरी बात है - शरीर - दर्शन । शरीर को देखना है। प्रश्न है कि क्या देखें ? चमड़ी को तो देखते हैं । शीशे के सामने खड़े होकर हर आदमी ध्यान से शरीर को देखता है और देखता है अपनी चमड़ी को, अपने रंग-रूप को । यह शरीर - दर्शन नहीं है। शरीर दर्शन का अर्थ है शरीर के भीतर होने वाली समस्त क्रियाओं का साक्षात्कार करना ।
शरीर के भीतर अनेक रसायन हैं. विद्युत है. हलचल है, प्रकम्पन है। शरीर के भीतर ग्रन्थियों के स्राव के कारण अनेक रासायनिक परिवर्तन हो रहे हैं। हमारे मस्तिष्क में रासायनिक परिवर्तन हो रहे हैं। चित्त कितने रसायनों को पैदा कर रहा है? उन रसायनों, विद्युत प्रवाहों के द्वारा किस प्रकार हमारी आदतें बनती हैं, बिगड़ती हैं। किस प्रकार हमारे मनोभाव बन रहे हैं, बिगड़ रहे हैं - इन सारी अवस्थाओं को देखने का अर्थ है - शरीर दर्शन । जब श्वास को शांत कर कायोत्सर्ग की मुद्रा में हम स्थिर होते हैं, अपनी सारी चेतना को बाहर से हटाकर भीतर में नियोजित करते हैं, तब हमें सबसे पहले शरीर के
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