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________________ १० जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग जीवन विज्ञान की प्रक्रिया का यह महत्वपूर्ण कार्य है-विद्यार्थी का दृष्टिकोण परिष्कृत हो, व्यवहार और भावना परिष्कृत हो। प्रश्न है-हमारा दृष्टिकोण, व्यवहार और भाव मिथ्या क्यों होते हैं? उनका माध्यम क्या है? हमारे दृष्टिकोण पर, व्यवहार और भाव पर नियंत्रण किसका है? कौन इनको संचालित करता है? वैज्ञानिक खोजों ने यह प्रस्थापित किया है कि इन सब पर हाइपाथलमस (मस्तिष्क का एक भाग) तथा अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों का नियंत्रण है। पीनियल और पिच्यूटरी-ये ग्रन्थियां इनको संचालित करती हैं। इन ग्रन्थियों से प्रभावित एड्रीनल भी इन पर नियंत्रण रखती है। हमें परिष्कार करना है दृष्टिकोण का, हमें परिष्कार करना है व्यवहार और भावना का। यह हमारा लक्ष्य है, किन्तु जब तक हाइपोथेलेमस पर ध्यान केन्द्रित नहीं करेंगे, तब तक ग्रन्थियों से स्रवित होने वाले स्राव का परिष्कार नहीं होगा और जब तक यह ग्रन्थि-स्राव परिष्कृत नहीं होगा तब तक दृष्टिकोण, व्यवहार और भाव का परिष्कार नहीं होगा। यह सही है कि परिस्थितियां हमारे दृष्टिकोण, व्यवहार और भाव को प्रभावित करती हैं, किन्तु उनका स्थान पहला नहीं है। वे मुख्य नहीं, गौण हैं। मुख्य हैं अन्त:स्रावी ग्रन्थियों के स्राव। इन्हें उपादान कारण कहा जा सकता है और परिस्थिति को निमित्त कारण माना जा सकता है। निमित्त का उतना मूल्य नहीं होता, जितना उपादान का होता है। घड़े का उपादान है मिट्टी और निमित्त है कुंभकार, चाक आदि। कुंभकार और चाक का भी अपना महत्व है, पर जब घड़े की निर्मिति होती है तब ज्यादा मूल्य होता है मिट्टी का। उपादान का मूल्य अधिक होता है। उसके बिना कुछ बनता नहीं। उपादान का परिष्कार उपादान और निमित्त-दोनों का परिष्कार करना है। मिट्टी के बिना भी घड़ा निर्मित नहीं होता और कुंभकार तथा चाक के बिना भी वह नहीं बनता। घड़े की निर्मिति में दोनों जरूरी हैं, पर दोनों में पहला स्थान है मिट्टी का। इसी प्रकार परिष्कार के लिए हमें पहला स्थान देना होगा आन्तरिक उपादानों को और दूसरा स्थान देना होगा परिस्थितियों को-परिस्थितिजनित निमित्तों को। परिष्कार घटित करना-यह जीवन विज्ञान का कार्य है। उसकी प्रक्रिया पर विचार करने से पहले हम यह अनुभव करें कि परिष्कार अपेक्षित है। हमारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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