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जीवन विज्ञान : प्रायोगिक
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विधि :
पदमासन, स्वस्तिकासन आदि किसी आसन में सुखपूर्वक स्थिरता से बैठे। मेरुदण्ड को सीधा एवं गर्दन को समस्थिति में रखें । दाएं हाथ का अंगूठा दाएं नथुने पर रखें, लेकिन बन्द न करें। पूरक करें, श्वास को धीरे-धीरे ग्रहण करें । दाहिने नथुने को अंगूठे से दबाए रखें। कुछ क्षण रोककर वायु को फेफड़े, कण्ठ और गले से स्पर्श करते हुए बाहर रेचन करें।
श्वास भरते और छोड़ते हुए चित्त को गले पर केन्द्रित रखें । गले से भंवरे के गूंजने की तरह ध्वनि करते हुए श्वास-प्रश्वास की क्रिया करें। समय :
नौ प्राणायाम से प्रारंभ कर २७ तक धीरे-धीरे बढ़ाएं।
लाभ:
भ्रामरी प्राणायाम से स्वरों की मधुरता होती है। वाणी के उच्चारण की स्पष्टता एवं श्वास दीर्घ तथा सूक्ष्म होने लगती है।
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