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________________ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग जीवन-विज्ञान : स्वस्थ समाज - रचना का संकल्प समाज रचना के आधार अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह ये तीन समाज-रचना के आधार हैं और ये तीन सामाजिक मूल्य हैं | अहिंसा के बिना समाज बनता नहीं । सत्य के बिना भी समाज नहीं बनता और अपरिग्रह के बिना भी समाज नहीं बनता । I पहला आधार है-अहिंसा । अहिंसा का पहला तत्व है-भावना का परिवर्तन | हिंसा के अनेक कारण हैं । उनमें एक बड़ा कारण है-भावना, एक प्रकार की धारणा का न्यास | आदमी आदमी को आदमी नहीं मान रहा है, यह एक भावना है। जब तक इस भावना का परिवर्तन नहीं होता तब तक सामाजिक मूल्यों का विकास नहीं हो सकता । अध्यात्म के आचार्यों ने इस भावना - परिवर्तन के लिए कुछ शब्द दिए- 'आत्मौपम्य' आत्मतुला, 'सब जीव समान, सब जीव अपनी आत्मा के जैसे हैं । ये शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं और गंभीर अर्थ की सूचना देने चाले हैं । इस भावना के अभाव में जातीय विद्वेष पनपा, सांप्रदायिक विद्वेष पनपा और राज्य का सीमागत विद्वेष पनपा । यदि यह भावना विकसित होती कि सब जीव समान हैं, मेरी आत्मा के जैसी ही है दूसरे की आत्मा, जैसी सुख दुःख की अनुभूति मुझे होती है, वैसी ही सामने वाले व्यक्ति को होती है तो यह जातीय और साम्प्रदायिक आक्रोश-विद्वेष कभी पनप नहीं पाता । वर्तमान स्थिति वर्तमान स्थिति क्या है ? एक काला आदमी है और दूसरा गोरा आदमी है । आदमी आदमी है, केवल चमड़ी का और रंग का अन्तर है । किन्तु गोरा आदमी अपने आपको श्रेष्ठ मान रहा है और काले आदमी को नीच मान रहा है। एक सवर्ण है दूसरा असवर्ण है । सवर्ण अपने को श्रेष्ठ मान रहा है और असवर्ण अपने को नीच मान रहा है। यह रंग के आधार पर विद्वेष, जाति के आधार पर विद्वेष, धारणाओं के आधार पर विद्वेष है । एक नाजी यहूदी को हीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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