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________________ जीवन विज्ञान : सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास का संकल्प १८.३ क्रोध, लोभ, भय आदि की वृत्तियां बार-बार जागती रहती हैं। उन्हें अभ्यास के द्वारा बार-बार शांत किया जा सकता है। केवल सिद्धांत के द्वारा उनका उपशमन नहीं होता किन्तु अभ्यास के द्वारा सिद्धांत के साथ तादात्म्य स्थापित करने पर उनका उपशमन किया जा सकता है । जीवन-विज्ञान अभ्यास पद्धति है । इसमें आसन, प्राणायाम, श्वास- प्रेक्षा, चैतन्य - केन्द्र - प्रेक्षा, अनुप्रेक्षा आदि अनेक प्रयोग हैं। इनके द्वारा आंतरिक परिवर्तन किया जा सकता है और व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए आंतरिक या रासायनिक परिवर्तन बहुत आवश्यक है । जीवन-विज्ञान का उद्देश्य क्या है, यह प्रश्न पूछा जाता है। इसका उद्देश्य है पुस्तकीय ज्ञान के साथ अच्छे ढंग से जीवन जीने की कला सिखाना । • अपने संवेगों पर नियन्त्रण करने की पद्धति सिखाना । ० अभ्यास के द्वारा रासायनिक सन्तुलन स्थापित करना और रासायनिक परिवर्तन घटित करना । • सामाजिक व्यवहार को निश्छल और मैत्रीपूर्ण बनाना । • मादक वस्तुओं के सेवन से मुक्ति दिलाना । O शिक्षा जगत् की समस्याएं आज शिक्षा जगत की कुछ समस्याएं हैं। जीवन-विज्ञान उन समस्याओं का समाधान है। यही उसके अस्तित्व की अपेक्षा है । शिक्षा की समस्याएं इस प्रकार हैं ० मस्तिष्क को ज्ञान - विकास के लिए अधिक प्रशिक्षित किया जा रहा है। उसे चरित्र - विकास के लिए बहुत कम प्रशिक्षित किया जा रहा है । ० पुस्तकीय शिक्षा, सिद्धांत, उपदेश और विचार-विनिमय से मस्तिष्क के चेतन भाग को प्रभावित किया जा रहा है। उसके अचेतन भाग को बहुत कम प्रभावित किया जा रहा है। ० चरित्र, आदत और संस्कार का सम्बन्ध मस्तिष्क के अचेतन भाग से अधिक है। उसे प्रभावित किए बिना समानता, सहिष्णुता, सह-अस्तित्व, संप्रदाय -निरपेक्षता और प्रामाणिकता जैसे मूल्यों को विकसित नहीं किया जा सकता । लोकतन्त्र और समाजवादी समाज की अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया जा सकता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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