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________________ : जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग १७६ I का विकास और अनुशासन का विकास - ये सारे चरित्र - विकास के तत्व हैं । चाहे सुपर लरनिंग की बात हो या जीवन-विज्ञान की बात हो, केवल सैद्धांतिक पक्ष से काम नहीं चलता, प्रयोगात्मक पक्ष आवश्यक होता है । तनाव मुक्ति प्रयोग की पहली बात है - तनाव से मुक्ति । विद्यार्थी में ग्रहणशीलता तब बढ़ेगी जब वह तनावमुक्त होगा । तनाव चाहे शारीरिक हो, मानसिक या भावनात्मक हो, तनाव के रहते क्षमता नहीं बढ़ सकती। इसलिए पहली बात है - तनावमुक्ति । सुपर लरनिंग में भी यही कराया जाता है। सत्य एक होता है। सत्य को कभी देशकाल में बांटा नहीं जा सकता । सत्य देशातीत और कालातीत होता है । वह त्रैकालिक है । हम जिसे कायोत्सर्ग कहते हैं, अन्यत्र उसे रिलेक्शेसन कहा जाता है। इससे शारीरिक तनाव विसर्जित हो जाता है। शरीर में कहीं तनाव नहीं रहता । मस्तिष्क तनाव रहित होता है तब ग्रहण की क्षमता बढ़ जाती है। जब विद्यार्थी तनाव से भरा रहता है तब वह कुछ नहीं पढ़ पाता । कायोत्सर्ग की अवस्था तनावमुक्ति की अवस्था है । उसमें उसकी पढ़ने की शक्ति बढ़ जाती है । १०-२० शब्द याद करने वाला विद्यार्थी पचास शब्द याद करने लग जाता है । श्वास की स्मृति 1 दूसरा प्रयोग है - लयबद्ध श्वास । योग में प्राणायाम का बहुत महत्व रहा है। धर्म का यह अनिवार्य अंग है । प्रत्येक धर्म के साथ उपासना की पद्धति जुड़ी हुई है । वैष्णव लोग संध्या करते हैं। जैन लोग प्रतिक्रमण करते हैं। मुसलमान नमाज पढ़ते हैं । वैष्णवों में संध्या करना आज भी प्रचलित है, पर वे संध्या के वास्तविक मर्म को भूल गए हैं। संध्या के साथ शिथिलीकरण, प्राणायाम और रंगों का ध्यान प्रचलित था । नीला रंग, लाल रंग और श्वेत रंग-इन तीन रंगों के साथ ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कल्पना थी । संध्या रह गई और रंगों के प्रयोग छूट गए। जैनों में भी प्रतिक्रमण रह गया और उसमें श्वास के साथ पाठ करना, उच्चारण करना छूट गया। प्राणायाम मस्तिष्कीय विकास के लिए अनिवार्य प्रक्रिया है । इसमें मस्तिष्क के सुप्त और निष्क्रिय केन्द्र जागृत और सक्रिय होते हैं । 1 लयबद्ध श्वास से मस्तिष्क की सुप्त शक्तियां जागती हैं । सारा तंत्र उससे . प्रभावित होता है । लयबद्ध चलना, बोलना, श्वास लेना- ये शक्तिजागरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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