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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग को कि जो बात शिक्षा की कही जाती है, वह तो टिकती नहीं है। उसे स्थान ही नहीं मिलता। एक भाई ने बताया कि पांच, दस दिन होते हैं, दिमाग में एक भार-सा हो जाता है, तनाव-सा हो जाता है, बहुत गुस्सा आने लग जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि भीतर के स्रावों का संतुलन नहीं है। हमारी ग्रन्थियों के स्राव का संतुलन बिगड़ा हुआ है। किन्हीं वृत्तियों के कारण यदि बार-बार ध्यान पेट पर, पेडू पर, नाभि या पेट के नीचे के भाग पर जाएगा तो ग्रन्थियों का संतुलन बिगड़ जाएगा। आज के वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि अच्छे और बुरे विचार के द्वारा ग्रन्थियों में असंतुलन पैदा होता है। बुरे विचारों से स्राव बिल्कुल दूसरे प्रकार के होंगे। ज्यादा डर लगता है तो हमारा सेंट्रल नर्वस सिस्टम बिलकुल असंतुलित हो जाता है। क्रोध की मात्रा ज्यादा होती है तो सारा ग्रंथितंत्र अस्त-व्यस्त हो जाता है। मस्तिष्क के स्नायु भी अस्त-व्यस्त हो जाते हैं। इनका संबंध जुड़ा हुआ है विचारों के साथ। बुरे विचार को छोड़ना धर्म और अध्यात्म की ही बात नहीं है, अपने स्वास्थ्य की भी बात है।
स्रावः परिवर्तन का उपाय
विचार हमें प्रभावित करते हैं। जिस प्रकार हमारा विचार होता है उस प्रकार के परमाणु का हम आकर्षण करते हैं। बुरा विचार होता है तो बुरे विचार के परमाणु आते हैं, अच्छे विचार होते हैं तो अच्छे विचारों के परमाणु आते हैं। जो बुरे प्रकार के परमाणु आते हैं। वे सबसे पहले हृदय पर आघात पहुंचाते हैं, चोट पहुंचाते हैं। हृदय बैठ जाता है। बुरे विचारों को बदलना और अच्छे विचारों को लाना बहुत अच्छी बात है। प्रश्न तो फिर वही रहा कि हम चाहते हैं कि बुरे विचार छूटे, अच्छे विचार आएं, पर कैसे आएं ? प्रश्न तो है कि वे आएं कैसे ? दुनिया में सबसे बड़ा प्रश्न है- कैसे और क्या ? इनकी व्याख्या तो बहुत मिलती है हमारे शाब्दिक जगत् में, किंतु कैसे हो, इसकी चर्चा शाब्दिक जगत् में कम है, अनुभव के जगत् में ज्यादा है। दीर्घश्वास प्रेक्षा स्राव को बदलने का बहुत सीधा-सा उपाय है। दीर्घश्वास का प्रयोग शुरू किया, स्राव बदलने लग जाएगा। श्वास की क्रिया जैसे-जैसे मंद होती है हमारी चेतना वर्तमान में आ जाती है। चेतना को वर्तमान में लाने का बहुत अच्छा साधन है-श्वास का अभ्यास।
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