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________________ विधायक भाव १६९ बातें होती हैं, किन्तु ये सारे मुख्य लक्ष्य नहीं हैं। ध्यान की शिक्षा, ध्यान के अभ्यास का मुख्य लक्ष्य है-चेतना की स्वतंत्रता को अनन्त आयाम देना। इतना बड़ा आयाम देना कि हमारी जो स्वतंत्रता है उसके सारे बंधन टूट जाएं और स्वतंत्रता अपने पूरे रूप में विकास पा सके । यह है ध्यान की शिक्षा का उद्देश्य। उसके लिए आंतरिक स्रावों पर अनुशासन करना बहुत जरूरी है। रस के स्राव जैन आचार्यों ने विस्तार के साथ कर्म-विपाकों का वर्णन किया । इतना बड़ा वर्णन भारतीय साहित्य में तो क्या, विश्व साहित्य में भी नहीं मिलता । इतना विवेचन किया है कर्म-विपाक का । यह कर्म-विपाक आज के विज्ञान की भाषा में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का स्त्राव है । रसायन है कर्म का-अनुभाग बन्ध। कर्म का जो रस आता है बाहर, वह हमारी चेतना को प्रभावित करता है। वह रस आता है ग्रन्थियों के माध्यम से। हटयोग ने इसे अमृत कहा है। गोरक्ष पद्धति में, हट-योग के अन्य ग्रन्थों में, इस स्राव की बहुत चर्चा मिलती है। अमृतपान की चर्चा मिलती है, सोमरस की चर्चा मिलती है। सोमरस क्या है ? यह है हमारे मस्तिष्क से होने वाला स्राव । तालु की समरेखा में अमृत का स्राव होता है, यह गोरक्ष पद्धति का एक उल्लेख है । यह स्राव पीनियल का स्राव है, पिच्यूटरी का स्राव है, क्योंकि समरेखा में ये दोनों प्रकार के स्राव होते हैं। ये स्राव हमें प्रभावित करते हैं। आज का शरीर-विज्ञानी बतलाएगा - जब तक हाईपोथेलेमस, पिच्यूटरी या पीनियल से हारमोंस का स्राव नहीं होता है तब तक एड्रीनल, गोनाडस आदि कुछ भी काम नहीं कर पाएंगे। ये वहां से अपना स्राव करते हैं, तब एड्रीनल में वृत्तियां जागती हैं और गोनाडस् में वासना जागती है । काम का होना, वृत्तियों का विकसित होना- इन पर निर्भर है, किन्तु ये निर्भर हैं ऊपर के स्रावों पर। उन स्रावों पर जब अनुशासन हो जाता है तब वृत्तियों पर अनुशासन हो सकता है। विचारों का असंतुलन अनुभव की बात यह है- हजार बार कहने से जो काम नहीं होता, वह एक स्राव को बदल देने से हो सकता है । हजार बार कहा जाए कि गुस्सा मत करो, फिर भी गुस्सा छुड़ाने में सफलता नहीं मिलती, जब तक भीतर का स्राव नहीं बदल जाता। बेचारा करे क्या ? स्राव इतना प्रभावित करता है मस्तिष्क Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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