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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग विधाओं का ज्ञान प्राप्त करता है, पर साथ ही साथ प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में पूरे प्रयोग भी करता है। यह है ज्ञान और क्रिया की समन्विति। जैसे मेडिकल साइन्स का विद्यार्थी जानता है कि अमुक-अमुक ग्रंथियां कहां हैं ? उनका कार्य क्या है ? इसका उसे पूरा ज्ञान होता है। वह डॉक्टर बन सकता है। पर आध्यात्मिक + वैज्ञानिक नहीं बन सकता। हमें उनके आध्यात्मिक मूल्य की जानकारी भी होनी चाहिए। पिनियल का फंक्शन शारीरिक है, किन्तु उस पर ध्यान- एकाग्रता करने से क्रोध शांत हो सकता है। मेडिकल साइन्स में यह विषय स्पष्ट नहीं है। जोधपुर में मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर ने कहा- हम पिनियल आदि ग्लेण्ड्स के फंक्शन को जानते हैं, किन्तु उनके द्वारा भाव-परिवर्तन किया जा सकता है, यह नहीं जानते। यह एक रहस्य की बात है। जैसे-जैसे आज विज्ञान ने नई खोजें शुरू की हैं, वैसे-वैसे नई बातें सामने आ रही हैं।
___ एक व्यक्ति के मन में पीड़ा है, शरीर में पीड़ा है, उस समय कोई धार्मिक प्रवचन सुनाया और उसकी पीड़ा शांत हो गई। ऐसे लोगों को भी देखा है, जो केन्सर की बीमारी से आक्रान्त थे। उन्हें भयंकर पीड़ा होती थी किन्तु जब उन्हें धार्मिक गीत और वाणी सुनाई जाती तब ऐसा लगता मानों उनके कोई पीड़ा है ही नहीं। ऐसा होता है, पर कैसे ? यह एक प्रश्न है। वैज्ञानिक जगत् में इसकी सुन्दर व्याख्या प्राप्त है। जब व्यक्ति अपनी श्रद्धा की बात सुनता है, तब मस्तिष्क में प्रशांत भाव जागृत होता है और 'एन्डोरफीन की मात्रा बढ़ जाती है। वह ऐसा रसायन है जो पीड़ा को शांत करता है, दर्द को कम करता है। भाव और व्यवहार
अनुप्रेक्षा भीतर से बदलने की प्रक्रिया है, भाव-परिवर्तन की प्रक्रिया है। स्वतः सूचना के द्वारा भाव-परिवर्तन होता है। घृणा, ईर्ष्या, भय, द्वेष, साम्प्रदायिकता- ये सारे भाव हैं। इनको अनुप्रेक्षा- सजेशन के द्वारा बदला जा सकता है। अभय की अनुप्रेक्षा से भय का भाव शांत हो जाता है। मृदुता की अनुप्रेक्षा से क्रूरता का भाव धुल जाता है।
__ भाव से व्यवहार बदलता है और व्यवहार से भाव बदलता है। भाव और व्यवहार का गहरा सम्बन्ध है। हम मानते हैं कि जैसा भाव होता है, वैसा व्यवहार बनता है। किन्तु आज की एक पद्धति है, 'बायोफीड'। इसके द्वार व्यवहार को बदल कर भी भाव को बदला जा सकता है। बाहर के द्वार
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