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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग ग्रन्थितंत्र को ठीक रखना । दूसरी बात है- संतुलित भोजन करना । यदि ग्रन्थितंत्र संतुलित रहेगा, पैन्क्रियाज ठीक है तो चयापचय की क्रिया ठीक चलेगी, सारी क्रियाएं ठीक चलेंगी। यदि गोनाड्स अनुशासित और संतुलित हैं तो कामुकता नहीं सताएगी।
जब शांतिकेन्द्र सक्रिय होता है तब मनोबल बढ़ता है। यह व्यक्ति हर बात को सहन कर लेता है। उसमें सहने की शक्ति विकसित होती है। अन्यथा सुरूप और सुन्दर दीखने वाले व्यक्ति भी सामान्य परिस्थिति के समक्ष घुटने टेक देते हैं। शरीर से शक्तिशाली होने पर भी उनका मन कमजोर होता है। मनोबल उसका बढ़ता है जिसका ग्रन्थितंत्र संतुलित होता है। महात्मा गांधी का शरीर हड्डियों का ढांचा मात्र था। पर उनका मनोबल इतना मजबूत था कि ब्रिटिश सरकार की सत्ता हिल उठी। उनकी यातनाएं गांधी को विचलित नहीं कर सकीं। इसका कारण यह है कि जिसका ग्रन्थितंत्र और नाड़ीतंत्र शक्तिशाली होता है, वह व्यक्ति महान् होता है, कुछ करने वाला होता है। मांस, हड्डियां, चमड़ी आदि का सीमित उपयोग है। ये सहायक फेक्टर हैं। मूल तत्त्व है नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र की सुरक्षा, व्यक्तित्व का निर्माण, अन्तःप्रज्ञा का निर्माण । इन सबका विकास होता है नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र की संतुलित अवस्था एवं निर्मलता के कारण। हमारा ध्यान इनकी ओर केन्द्रित होना चाहिए।
रंगों का प्रभाव
संवेग - परिष्कार का तीसरा प्रयोग है- रंगों का ध्यान । अनुप्रेक्षाओं के साथ अनेक रंगों का ध्यान किया जाता है। रंग संवेगों के परिष्कार में बहुत सहायक होते हैं।
एक विद्यार्थी अत्यन्त चंचल है। कहीं टिक नहीं पाता। उसे नीले रंग का ध्यान कराएं। एक सप्ताह के बाद उसमें परिवर्तन आने लगेगा। रूस में इस विषय पर अनुसंधान और प्रयोग किये गये। एक विद्यालय के विद्यार्थी बहुत उद्दंड और चंचल थे। अधिकारियों ने वैज्ञानिक दृष्टि से सब बातों पर ध्यान दिया। उन्होंने वैज्ञानिकों को आमंत्रित किया। वे आए। उन्होंने देखकर कहाइस मकान की खिड़कियों, दरवाजों, कुर्सियों तथा फर्श पर बिछी कालीनों का रंग गहरा लाल है। यह लाल रंग विद्यार्थियों में उद्दंडता, आवेश और चंचलता पैदा कर रहा है। इस समस्या का सही समाधान है कि लाल रंग को बदला जाए और उसके स्थान पर गुलाबी रंग कर दिया जाए। विद्यालय के अधिकारियों
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