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________________ संवेग-संवेद और नियन्त्रण की पद्धति १४५ होगी और न वह अन्यमनस्कता का शिकार ही होगा। आज जेनेटिक इंजीनियरिंग में यह चर्चा चल रही है-कुछ दशकों के बाद यह स्थिति बन सकती है कि माता-पिता जैसा लड़का चाहेंगे वैसे लड़के का जीन उन्हें लेबोरेटरी से मिल जाएगा। वकील, डॉक्टर, दार्शनिक आदि के जीन वे खरीद सकेंगे और उन्हीं के अनुरूप बच्चा प्राप्त कर सकेंगे। यह कब संभव होगा, ऐसा निश्चित नहीं कहा जा सकता पर जीन के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों का यह अभ्युपगम है, कन्सेप्ट है और वे इसे सत्य करने में जुटे हुए हैं। विद्यार्थी को बचपन से ही यदि संवेग-परिष्कार का अभ्यास कराया जाए तो माता-पिता की इच्छा को शिक्षक पूरा कर सकेगा। उन्हें एक अच्छा और सुसंस्कृत लड़का मिल जाएगा। यह कोरी कल्पना नहीं है, वैज्ञानिक बात है। आध्यात्मिक और वैज्ञानिक-इन दोनों दृष्टियों से यह प्रमाणित हो चुका है कि आदमी की आदतों को बदला जा सकता हैं। संवेग-परिष्कार के दोनों प्रयोग इस दिशा में अचूक प्रयोग हैं। इनके अभ्यास से अनेक क्रोधी और व्यसनी व्यक्तियों ने अपने संवेगों से छुटकारा पाया है। अनेक मद्यपायी और अन्यान्य मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले व्यक्ति अपनी आदतों को छोड़कर सुख से जीवन यापन कर रहे हैं। भय की समस्याओं से त्रस्त व्यक्ति इन प्रयोगों से भयमुक्त होकर आज अभय का जीवन जी रहे हैं। ग्रन्थि तंत्र का संतुलन जब संवेग परिष्कृत होते हैं, तब नाड़ीतंत्र और ग्रन्थीतंत्र का संतुलन बना रहता है। सामान्यतः हमारा यह विश्वास है कि संतुलित भोजन होता है तो जीवन अच्छा चलता है, शक्ति सही ढंग से काम करती है। यह गलत बात तो नहीं है, किन्तु इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि संतुलित भोजन होने पर भी यदि पाचनतंत्र संतुलित नहीं है तो भोजन अपना काम नहीं करेगा। जिसका पाचन ठीक नहीं, वह कितना ही अच्छा खाता है, सारा व्यर्थ चला जाता है। प्रश्न होता है कि पाचनतन्त्र को ठीक करना पहली बात है या संतुलित भोजन करना पहली बात है ? पहली बात है- पाचन-तंत्र को स्वस्थ बनाना। दूसरी बात है-संतुलित भोजन करना। एक प्रश्न है- क्या ग्रन्थि तंत्र को स्वस्थ रखना पहली बात है या संतुलित भोजन करना पहली बात है? पहली बात है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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