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शिक्षा और मुक्ति की अवधारणा
१३७ करना लोग नहीं जानते। वे कांट-छांट करना नहीं जानते। यह सारा संघर्ष संवेगो का संघर्ष है। मानसिक शाति और विश्वशाति की बात संवेगों के नियमन पर आधारित है। हमें सोचना होगा कि शिक्षा के साथ जैसे बौद्धिक विकास की बात जुड़ी है, वैसे ही उसके साथ संवेग-परिष्कार की बात जुड़े। ऐसा होने पर ही शिक्षा अभ्यासात्मक या प्रयोगात्मक हो सकती है। तभी उसकी सार्थकता होगी।
जीवन-विज्ञान का यही आधार-बिन्दु है। इस बिंदु पर शिक्षा प्रणाली का विकास होने पर शिक्षा का अभूतपूर्व अवदान हो सकता है।
- अभ्यास जीवन विज्ञान की परिकल्पना में मुक्ति की अवधारणाओं को स्पष्ट करें। २. संवेग नियंत्रण के लिए क्या बौद्धिक विकास पर्याप्त नहीं है ?
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