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शैली में बदलाव ८६, शुद्ध साधनों के प्रति आस्था ८७, सामाजिक जीवन का आधार ८७, १. अस्तित्व सत्य ८८, २. नियम सत्य ८८, ३. ऋतुजा सत्य ८९, ४. अविसंवादिता सत्य ९०, ५. प्रामाणिकता सत्य ९१
खण्ड-ब जीवन विज्ञान : शिक्षा का नया आयाम २.१ शिक्षा का नया आयाम : जीवन विज्ञान
सामाजिकता का आधार : परस्परता ९५, सामाजिकता का शत्रु : स्वार्थ ९५, परस्परता की श्रृंखला ९६, दूसरा घटक : संवेदनशीलता ९६, जीवन विज्ञान : परिष्कार की प्रक्रिया ९७, परिष्कार के तत्त्व ९८, मूल तत्त्व की विस्मृति ९८, स्वामित्व का समाजीकरण ९९, स्वामित्व का सीमा बोध ९९, भोग-उपभोग की सीमा १००, स्वतंत्रता की सीमा १००, कोरी बौद्धिक शिक्षा के परिणाम १०१, जीवन-विज्ञान : समन्वित शिक्षा पद्धति १०१, जीवन विज्ञान : जीवन से जुड़ी शिक्षा १०२, जीवन : विज्ञान : कमी की सम्पूर्ति १० १०३, आवश्यकता है आंख की १०४, शिक्षा जगत को दिशादर्शन १०५ २.२ शिक्षा और भावात्मक परिवर्तन
९५-१०५
दैहिक विकास १०६, इन्द्रिय विकास १०७, मानसिक विकास १०७, बौद्धिक विकास १०७, भावात्मक विकास १०९, जरूरी है उपायज्ञ होना १११, अनासक्ति का प्रयोग १११, अभ्यास से बनते हैं संस्कार १११, अभ्यास परिपक्वता के लिए तीन तत्त्व ११२, संकल्प परिपक्वता के लिए आलंबन ११२, यात्रा अनुभूति के स्तर पर ११३, रूपान्तरण की प्रक्रिया के तीन घटक ११४
२.३ शिक्षा और नैतिकता
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१०६-११४
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नैतिकता के आधार ११५, नैतिकता के स्रोत ११५, परिवर्तन के हेतु ११६, नैतिकता का उपाय : शरीर बोध ११६, हिपोक्रेट्स का मत ११७, स्वभाव का हेतु ११७, समीक्षा का दायरा ११८, आशा की किरण ११८, दैहिक अनुशासन ११९, आस्था की समस्या ११९, शिक्षा जगत् की कठिनाई १२०, रूपान्तरण के केन्द्र १२१
२.४ शिक्षा और जीवन मूल्य
मूल्यों का वर्गीकरण १२२, मूल्य बोध की चेतना जागे १२३, मूल्यों
११५-१२१
१२२१२९
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