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________________ शिक्षा और नैतिकता ११७ मानसिक और भावनात्मक अनुशासन संभव नहीं है और उसके बिना नैतिकता संभव नहीं है। शरीर और मन दोनों जुड़े हुए हैं। शरीर को छोड़कर मन की व्याख्या नहीं की जा सकती और मन को छोड़कर शरीर की व्याख्या नहीं की जा सकती। दोनों में इतना गहरा संबंध है कि एक दूसरे के बिना एक दूसरे की गति ही नहीं है। हिपोक्रेट्स का मत शरीर को समझने के लिए दो तंत्रों पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। एक है नाड़ी तंत्र और दूसरा है ग्रन्थितंत्र। हमारे स्वभाव और भाव बदलते रहते हैं। एक आदमी अभी प्रसन्न है, थोड़ी देर बाद उदास हो जाएगा, थोड़ी देर बाद क्रुद्ध हो जाएगा। परिवर्तन होता रहता है। ऐसा क्यों होता है, इस पर शरीरशास्त्रियों ने भी विचार किया है। ग्रीक शरीरशास्त्री हिपोक्रेट्स ने मनुष्यों को चार श्रेणियों में बांटा है- १.वातवृत्ति २.पित्तवृत्ति ३. कफवृत्ति ४. रक्तवृत्ति। वातवृत्ति वाला व्यक्ति उदास और खिन्न रहता है। पित्तवृत्ति वाला गुस्सैल होता है। वह बात-बात में उत्तेजित और कुपित हो जाता है। कफवृत्ति वाला ठंडा होता है, पर लालची अधिक होता है। रक्तवृत्ति वाला सदा प्रसन्न रहता है। हमारे शरीर में चार द्रव्य हैं-वात, पित्त, कफ और रक्त। इनके आधार पर मनुष्य चार श्रेणियों में बंट गया। स्वभाव का हेतु __ आदमी की प्रवृत्ति और स्वभाव के पीछे ये तत्त्व काम करते हैं। आदमी पहले चिड़चिड़ा नहीं था, पर बाद में चिड़चिड़ा हो जाता है शरीर-शास्त्री कहेगा कि कहीं इसका लीवर तो खराब नहीं है। होम्योपैथिक डाक्टर भी स्वभाव के आधार पर निर्णय लेगा कि यह चिड़चिड़ा है तो इसका लीवर खराब होना चाहिए। बीमारियों के कारण आदमी का भाव बदल जाता है, स्वभाव बदल जाता है। ग्रन्थियों का संतुलन बिगड़ने पर भी स्वभाव बदल जाता है। जब थाइरायड ग्रंथि ठीक काम नहीं करती है तब उत्तेजना आने लग जाती है, निराशा छा जाती है। गोनाड्स के अतिसक्रिय होने से आदमी स्वार्थी बन जाता है। जब स्वार्थ, उत्तेजना, क्रोध आदि हैं तो फिर नैतिकता की बात कैसे होगी ? नैतिकता में बहुत बड़ी बाधा है स्वार्थ। यदि स्वार्थ की बात कम हो जाती है तो अनैतिकता स्वत: कम हो जाती है, समाप्त हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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