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________________ ११६ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग मोह नहीं छोड़ता। धार्मिक आस्थाएं अलग-अलग होती हैं। वहां ऐसी कल्पना नहीं की जा सकती कि ईश्वरीय सत्ता में आस्था पैदा हो। इसलिए शिक्षा के साथ नैतिकता का विचार-विमर्श करते समय हमें एक दूसरा आधार खोजना होगा। वह आधार है-शारीरिक अनुशासन। जीवन-विज्ञान के क्षेत्र में दूसरे सारे संदर्भो और परिभाषाओं से हटकर नैतिकता को शरीर के साथ जोड़ा है। वह नैतिकता का बहुत बड़ा हेतु बन सकता है। यह स्पष्ट है कि नैतिकता का एक ही स्लाते या कारण नहीं माना जा सकता। अलग-अलग कारण हो सकते हैं, किन्तु शारीरिक अनुशासन बहुत बड़ा कारण है। हम नैतिकता की एक उपायात्मक पद्धति को काम में नहीं ले सकते। घटना का घटित होना और उपाय खोजा जाना- ये दो बातें हैं। उपाय पर विचार नहीं किया जा सकता। परिवर्तन के हेतु बहुत प्राचीन काल में परिवर्तन की प्रक्रिया पर चिंतन चला तो दो समाधान सामने आए अध्यात्म के क्षेत्र में-वैराग्य और अभ्यास, निसर्ग और अभ्यास। ये व्यवहार के क्षेत्र में भी घटित हो सकते हैं। आदमी कैसे बदल सकता है ? मन को एकाग्र कैसे किया जा सकता है ? चित्तवृत्तियों को कैसे बदला जा सकता है ? आंतरिक विकास कैसे हो सकता है ? इसके दो उपाय निर्दिष्ट हैं-वैराग्य और अभ्यास, निसर्ग और अभ्यास। उमास्वाति के आधार पर दो उपाय हैं-निसर्ग और अधिगम। निसर्ग और वैराग्य वाली बात आनुपातिक दृष्टि से बहुत कम होती है। बहुत कम व्यक्ति वैराग्य को प्राप्त होते हैं और बहुत कम व्यक्ति निसर्गत: कुछ प्राप्त कर सकते हैं, उपलब्धियां प्राप्त होती हैं। हमारे विचार-विमर्श का विषय अभ्यास ही बन सकता है। नैतिकता का उपाय : शरीर बोध प्रश्न है कि शिक्षा में नैतिकता का उपाय क्या हो सकता है ? विद्यार्थी को नैतिकता का उपाय देना, अभ्यास देना, शिक्षा का परम कार्य है। यदि शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थी को नैतिकता का अधिगम नहीं दिया जाता, बोध नहीं कराया जाता, अभ्यास और उपाय नहीं दिया जाता तो मानना होगा कि नैतिकता और शिक्षा का कोई संबंध ही नहीं है। पर आज उसकी अनिवार्यता महसूस हो रही है। नैतिकता शिक्षा के साथ अवश्य जुड़े, उसका उपाय और अभ्यास जुड़े। इस प्रक्रिया में सबसे पहला तत्त्व है-शरीर-बोध और शारीरिक अभ्यास। शारीरिक अनुशासन के बिना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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