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________________ है, उसे नष्ट होते वक्त नहीं लगता। मुझे लगता है, भारतीय संस्कृति में कुछ ऐसे शाश्वत तत्त्व हैं, जो उसे को लंबे काल से बनाए हुए हैं । इतिहास बताता है कि उसे नष्ट करने के प्रयत्न कम नहीं हुए। हजारों-हजारों मूर्तियां तोड़ी गईं, मंदिर तोड़े गए। और भी न जाने कितने-कितने प्रहार संस्कृति को नष्ट करने के लिए हुए, पर हम देखते हैं कि बुरी तरह प्रभावित होकर भी संस्कृति सर्वथा नष्ट नहीं हुई, बल्कि उसे नष्ट करने का प्रयत्न करनेवाले ही स्वयं उसका अस्तित्व स्वीकार करने लगे हैं । वे सह-अस्तित्व का सिद्धांत मानने के लिए तैयार हो रहे हैं। मैं मानता हूं, सह-अस्तित्व का सिद्धांत बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसे स्वीकार करके चलने से विभिन्न जातिओं, भाषाओं, संप्रदायों और संस्कृतियों के लोग बड़े प्रेम से साथसाथ रह सकते हैं। कम्यूनिज्म को भी देर-सवेर यह सिद्धांत स्वीकार करना ही होगा, अन्यथा वह स्वयं ही अपने अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर लेगा। रूस जैसा - राष्ट्र भी आज समझौतावादी बन रहा है। उसे भी इसकी उपयोगिता और उपादेयता स्वीकार करनी पड़ रही है। न्याय - शास्त्र का सूत्र है-घटकुट्ट्यां प्रभातम् । तात्पर्य यह कि घूम-फिरकर मूल मार्ग पर आ जाना। एक व्यक्ति ने शहर में सौदा खरीदा। जगात न चुकानी पड़े, इसलिए वह चुंगी चौकी से टलकर जाना चाहता था। उसने दूसरा मार्ग लिया । लेकिन थोड़ी दूर जाकर भटक गया। रात भर भटकता रहा । प्रातः उसने अपने को चुंगी चौकी के पास पाया। इसी प्रकार सह-अस्तित्व को न माननेवालों को भी अंत में उसका अस्तित्व स्वीकार करना होगा। अपने विवेक से स्वीकार करेंगे तो समझदारी है, अन्यथा काल के थपेड़े खाकर उन्हें मानना पड़ेगा। आप निश्चित मानकर चलें कि सह-अस्तित्व का सिद्धांत स्वीकार किए बिना विश्व शांति की बात कभी आकार ग्रहण नहीं कर सकती । हां, तो मैं आपसे कह रहा था कि किसी संस्कृति के शाश्वत तत्त्व कभी नष्ट नहीं हो सकते। काल और परिस्थितियों के थपेड़े खाकर वह छिन्न-भिन्न तो हो सकती है, पर अपने उन शाश्वत तत्त्वों के कारण स्वयं का अस्तित्व बचाने में सफल रह जाती है, और जब उसका अस्तित्व कायम रहता है तो कालांतर में अनुकूल परिस्थितियां पाकर वह पुनः पनप जाती हैं। छठे आरे में राजा प्रजा नहीं रहते। शास्त्र, सिद्धांत आदि नहीं रहते । प्रकृतिगत सारी सुंदरता नष्ट हो जाती है। पर्वत, नदी, गांव, नगर साधना की सफलता का रहस्य Jain Education International For Private & Personal Use Only ७७० www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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