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के लड़के को। राजा ने चारण को संबोधित करके कहा-'अरे भाई ! तुम भी कोई मनुष्य हो! बेचारे लड़के को हल में जोत रखा है! तनिक भी दया नहीं है!....' चारण ने सुना और बोला-'बड़ा आया है दया-हया की बात करनेवाला! यदि तेरे मन में इतना विचार आता है, तो तू आ जा। फिर इसे छोड़ देता हूं।'
राजा तो ऐसा चाहता ही था। वह झट हल के पास पहुंच गया। चारण ने हल से अपने लड़के को हटाया और उसके स्थान पर राजा को जोत दिया। हल चलना शुरू हुआ। जिस राजा ने कभी अपने हाथ से लोटा उठाकर पानी भी नहीं पिया, वह हल में कैसे चल पाता? बड़ी मुश्किल से ले-देकर उसने तीन-चार ऊमरे काटे कि उसकी हालत एकदम बिगड़ गई। सांस लुहार की धौंकनी की तरह तेजी से चलने लगी। शरीर पसीने से नहा गया। राजा को लगा, अब यदि एक कदम भी आगे चला तो प्राण सुरक्षित नहीं हैं। वह वहीं रुक गया और गिड़गिड़ाता हुआ-सा बोला-'भाई! माफ करो, मैं तो हल नहीं खींच सकता।' चारण ने झुंझलाहट के साथ उसे हल से खोलते हुए कहा-'बड़ा आया था मुझे दया-हया की बात कहनेवाला! हो गई बस दया-हया पूरी! चल यहां से, मेरा कितना समय बेकार बरबाद कर दिया।'
राजा की जान-में-जान आई, पर उसकी शरीरिक हालत इतनी बिगड़ चुकी थी कि वह खेत से बाहर जाने की स्थिति में भी नहीं था। वह एक तरफ वहीं लेट गया। काफी देर विश्राम करने के पश्चात वह सामान्य बना। अब वहां से उठा और अपने महल की ओर लौटने के लिए उद्यत हुआ। चलते-चलते उसने चारण से कहा-'भाई! मैंने जितने ऊमरे काटे हैं, उनकी विशेष हिफाजत रखना।' चारण बोला-'बड़ा आया है, हिफाजत की बात करनेवाला! मानो तेरे काटे ऊमरों में कोई मोती पैदा होंगे!' राजा ने कहा-'भाई ! समय की बात है। कभी-कभी अवसर पर बोने से मोती भी निपज जाते हैं।' चारण जरा झिड़ककर बोला-'चल-चल, अपना रास्ता माप। मेरे पास तेरे से बेकार बात करने के लिए समय नहीं है। करना-धरना तो कुछ है नहीं, खाली लंबी-चौड़ी और ऊटपटांग बातें करता है।'
राजा ने कोई प्रतिवाद नहीं किया। चुपचाप उन्हीं पैरों महल में लौट आया।
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आगे की सुधि लेइ
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