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के अंतिम भाग में एक चारण रहता है। उसे दान देना तुम्हारे लिए अभी शेष है। जब तुम उसे दान दे चुके होगे, तब तुम्हारा इच्छित फलित हो जाएगा।' राजा बोला-'शायद मेरी उद्घोषणा उसके कानों तक पहुंची नहीं है, अन्यथा नगरी के सभी लोगों ने दान लिया है तो उसके न लेने का कोई कारण समझ में नहीं आता। ठीक है, मैं आज ही उसे बुलाकर अपने हाथ से दान दे दूंगा।' देवी ने कहा-'तुम्हारा अनुमान सही नहीं है। उसने तुम्हारी उद्घोषणा बहुत अच्छी तरह से सुनी है, पर वह जानबूझकर नहीं आया है।' राजा को आश्चर्य हुआ। उसने उसी भावधारा में पूछा'उद्घोषणा सुनकर भी नहीं आया, ऐसी क्या बात है?' देवी बोली-‘ऐसे तो वह अत्यंत गरीब है, बड़ी मुश्किल से अपना काम चलाता है। यहां तक कि उसके पास खेती करने के लिए बैलों की जोड़ी भी नहीं है। मात्र एक बैल है। इसलिए हल में एक तरफ बैल जोतता है और दूसरी तरफ अपने पुत्र को, पर इसके बावजूद वह किसी का सहयोग नहीं लेता। उसका संकल्प है कि मैं अपने पुरुषार्थ का ही खाऊंगा। दूसरों से कुछ भी नहीं लूंगा। इसलिए तुम लाख चेष्टा करो तो भी वह तुम्हारे हाथ से दान नहीं लेगा।' देवी को सुन राजा का चेहरा उदास हो गया। निराशा के स्वर में बोला-'तब तो महल बनाने की मेरी तमन्ना धरी-की-धरी रह जाएगी।' राजा को निराशा की गिरफ्त से छुड़ाती हुई देवी बोली-'एक उपाय तुम्हें बताती हूं। उपाय कठिन अवश्य है, पर तुम यदि कर सको तो तुम्हारा काम बन सकता है।' राजा अत्यंत उत्साहित होकर बोला-'मां! कौन-सा उपाय है? तुम बताओ। कितना ही कठिन क्यों न हो, मैं करूंगा।' देवी ने कहा-'देखो, तुम किसान का वेश बनाकर उसके खेत में जाओ। जब वह हल जोते तो कह-सुनकर किसी प्रकार उसके बेटे की जगह तुम जुत जाना। मैं ऐसा उपाय करूंगी, जिससे तुम्हारे द्वारा काटे गए ऊमरों में अनाज की जगह मोती निपजेंगे। इस प्रकार तुम्हारे द्वारा उसके घर में धन पहुंच जाएगा और तुम्हारा महल बनाने का स्वप्न साकार हो जाएगा।'
किसी राजा के बैल की जगह हल में जुतने की कल्पना ही नहीं की जा सकती, पर वह राजा महल बनाने की अपनी ललक से बंधा था, इसलिए उसे ऐसा करना भी मंजूर हो गया। दूसरे ही दिन वह किसान का वेश बनाकर चारण के खेत की मेंड़ पर पहुंचा। राजा ने देखा, देवी का कथन अक्षरशः सत्य है। फटेहाल चारण ने हल में एक तरफ बैल को जोत रखा है और दूसरी तरफ अपने एक बारह-तेरह वर्ष
धर्म का स्वरूप
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