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________________ ९ : धर्म का स्वरूप धर्म आत्मशांति की प्राप्ति का एकमात्र साधन है। दूसरे शब्दों में आत्मशांति और धर्म में अविनाभावी संबंध है। धुआं है तो अग्नि निश्चित है। अग्नि के बिना धुआं नहीं हो सकता। ठीक इसी प्रकार आत्मशांति की उपलब्धि धर्म के बिना नहीं हो सकती। धन-संपत्ति और अन्य भौतिक पदार्थ जीवनयापन के साधन जुटा सकते हैं, पर आत्मशांति नहीं दे सकते। यदि धन-वैभव और भौतिक पदार्थ ही व्यक्ति को शांति दे पाते तो सम्राट, राजा और धनपति लोग सर्वाधिक सुखी होते, पर हम देखते हैं कि उन्हें शांति नहीं है। शांति की प्राप्ति में उनकी व्यर्थता वे स्वयं अनुभव करने लगते हैं। चाबी सही है तो ताला अवश्य खुलेगा ___ बहुत-से लोग कहते हैं कि हम वर्षों से धर्म करते हैं, पूजा-उपासना करते हैं, फिर भी मन में शांति नहीं है। ऐसा क्यों ? धर्म करते हैं और आत्मशांति नहीं मिल रही है यह बात मैं कभी स्वीकार नहीं कर सकता। जो लोग ऐसा कहते हैं, उसका अर्थ इतना ही है कि उन्होंने धर्म को सही रूप में समझा नहीं है, उसका समुचित उपयोग करना सीखा नहीं है। इस स्थिति के लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं, परंतु बड़ी विचारणीय बात तो यह है कि लोग स्वयं की त्रुटि की ओर ध्यान नहीं देते और धर्म को बदनाम करने लगते हैं। वैद्य रोगी को दवा देता है। रोगी दवा तो लेता है, पर उसके पथ्य-परहेज का ध्यान नहीं रखता। इस स्थिति में उसे स्वास्थ्य की प्राप्ति नहीं होती। नासमझ रोगी दवा का उपयोग सही ढंग से न करने की अपनी गलती तो समझता नहीं और दवा को बेकार कह बदनाम करता है, वैद्य का दोष निकालता है। चाबी यदि सही है तो ताला क्यों नहीं खुलेगा? अवश्य खुलेगा। यदि नहीं खुलता है तो यह मानना चाहिए कि चाबी सही विधि से घुमाई नहीं जा रही है। .५४० आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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