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________________ सड़ी और निकम्मी है। नदी पार करने के लिए व्यक्ति बेड़ा काम में लेता है, पर क्या नदी पार करने के बाद भी उसे सिर पर उठाए रखना जरूरी है? विषवृक्षोऽपि संवर्ध्य स्वयं छेत्तुमसाम्प्रतम्-यह सिद्धांत मेरी दृष्टि में सम्यक नहीं है। अपने हाथ से विष का पौधा लगा लिया यह भूल हुई, किंतु उसे उखाड़ना ही नहीं, यह क्या काम की बात है? कोई गलत परंपरा पड़ गई या कोई परंपरा अपना मूल्य खो चुकी, उसे तोड़ने में जरा भी संकोच नहीं होना चाहिए। नियमितता का मूल्य उपासना का अर्थ मंदिर में धूप, दीप करना या प्रतिमा के चरणों पर फूल चढ़ाना नहीं है। उपासना का अर्थ है-मानसिक एकाग्रता की साधना। चारों ओर भटकते मन को मंत्र, जप, ध्यान, स्वाध्याय आदि उपासनाक्रियाओं के द्वारा एकाग्र बनाया जा सकता है, पर इसका क्रम व्यवस्थित होना चाहिए। साधना में नियमितता अत्यंत अपेक्षित है। नियमित कार्यों में वैज्ञानिकता स्वयं आ जाती है। जहां नियमितता का अभाव होता है, वहां अच्छी क्रिया भी अपना पूरा लाभ नहीं दे पाती। इसका कारण स्पष्ट ही है कि अनियमितता तल्लीनता आने में बाधक बनती है और जब तल्लीनता नहीं होती, तब वह क्रिया समग्रता से नहीं की जा सकती। सामायिक है संतुलन का अभ्यास सामायिक भी एक प्रकार की उपासना है। बहुत अच्छी उपासना है। सामायिक का अर्थ है-समता का लाभ। कोई असंतुलित हो जाए तो सामायिक से पुनः संतुलित बन सकता है। मन, वाणी और क्रिया में संतुलन का अभ्यास ही सामायिक है। धर्मस्थान : अपेक्षा और आचार्य भिक्षु का मंतव्य सामायिक के लिए भी समय की नियमितता अत्यंत अपेक्षित है। इसी प्रकार नियत स्थान का महत्त्व भी उसके साथ जुड़ा हुआ है। और यह सामायिक के साथ ही क्यों, ध्यान, जप, स्वाध्याय आदि सभी क्रियाओं के साथ जुड़ा हुआ है। प्राचीनकाल में वैयक्तिक एवं सामूहिक दोनों प्रकार की पौषधशालाएं बनाने का क्रम था, किंतु कालांतर में यह पद्धति छूट गई। लोग मकान बनवाते समय अपनी अन्यान्य विभिन्न अपेक्षाओं का तो बहुत ख्याल रखते हैं, पर उपासना करने के लिए भी एक स्वतंत्र कक्ष की जरूरत है, यह बात उपेक्षित हो जाती है। यही स्थिति सामूहिक उपासना .५० आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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