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________________ भयभीत हो जाती है, अपनी सुरक्षा के लिए वह हिंसक बन जाती है। यदि वह आपसे भयभीत न हो तो उसकी हिंसात्मक वृत्ति नहीं उभर सकती। वस्तुतः हिंसा और भय तथा अभय और अहिंसा में तादात्म्य संबंध है। लेकिन आम जनता में यह भ्रम रहता है कि भयभीत रहना अहिंसा है।' सामाजिक परिवेश और अहिंसा ___ मैने कहा-'समाज और राष्ट्र में रहकर व्यक्ति जो-कुछ करता है, वह सब-कुछ अहिंसा है-यह मानना भी बहुत बड़ी भ्रांति है। गृहस्थ जीवन में कौन-कौन-सी हिंसा नहीं होती? अहिंसा तो कहीं-कहीं होती है। जीवन के हर व्यवहार को अहिंसा से तौलना ठीक नहीं है। मनुजी ने तो गार्हस्थ्यजीवन में पांच वध के स्थान बताए हैं पंचशूना गृहस्थस्य, चुल्लीपेषण्युपस्करी । कंडनी उदकुंभश्च, बध्यते यास्तु वाहयन्॥ - चुल्हा, चक्की, झाडू, ओखली और जलकुंभ-ये पांच हिंसा के स्थान हैं। कहने तात्पर्य यह कि घर, परिवार और समाज में रहनेवाले व्यक्ति का जीवन हिंसा के साथ जुड़ा हुआ है।' विवेक अपेक्षित है अपने प्रतिपादन का दूसरा पहलू छूते हुए मैंने कहा--'पर इस संदर्भ में एक बात अवश्य ध्यान देने की है। गार्हस्थ्य जीवन में व्यक्ति हिंसा से नहीं बच सकता, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि वह अहिंसा की साधना बिलकुल भी न करे। गृहस्थ की भूमिका में भी जीवन में अहिंसा की पुट आवश्यक है, अत्यंत आवश्यक है। जितनी हिंसा से बचना उसके लिए संभव हो, उतनी हिंसा से उसे सलक्ष्य बचना चाहिए। एक विवेकसंपन्न व्यक्ति अपनी घर-गृहस्थी चलाता हुआ भी एक सीमा तक अहिंसा को व्यवहार्य बना सकता है। जो हिंसा गफलतवश होती है या अविवेक के कारण होती है, उसे बड़ी सहजता से टाला जा सकता है। घर-घर में अनाज पीसा जाता है, पिसाया जाता है। अब यदि सावधानी नहीं रखी जाती है तो अनाज के साथ घुण भी पीसे जा सकते हैं। रसोई बनाते समय विवेक नहीं रखा जाता है तो अनेक जीव मर सकते हैं। जो गृहिणी इस दृष्टि से सजग होती है, गफलत नहीं करती, वह सहज रूप से इस हिंसा से बच जाती है। इसी क्रम में पानी बिना छाने .२० आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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