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न करे, क्या यह ठीक है?'
उसे समाधान देते हुए मैंने कहा-'शायद आप मेरे विचारों से परिचित नहीं हैं, इसलिए ऐसी भ्रांत धारणा के शिकार बने हुए हैं। मेरी दृष्टि में अहिंसा जीवन की पवित्रता का साधन है। जहां व्यक्ति को अपने जीवन का विकास करना है, वृत्तियों पर नियंत्रण करना है, वहां उसे अहिंसा की शरण में आना होगा, पर जहां व्यक्ति का लक्ष्य आत्म-पवित्रता नहीं है, वहां अहिंसा शरण नहीं बन सकेगी। कोई राष्ट्र आपके राष्ट्र को हड़पना चाहता है, आप पर आक्रमण करता है, ऐसी स्थिति में अहिंसा सफल कैसे हो सकेगी? वहां तो आपको हथियार उठाना आवश्यक हो सकता है, हिंसा का सहारा लेना जरूरी हो सकता है। हालांकि हिंसा हिंसा ही है, उसे अहिंसा नहीं माना जा सकता, तथापि परिग्रह की सीमा से बंधे व्यक्ति के लिए यह हिंसा आवश्यक हो जाती है। यह संभव नहीं है कि आप परिग्रह से तो बंधे रहें और हिंसा से सर्वथा बचना चाहें। यदि आप अहिंसा से पूंजी का संरक्षण चाहते हैं, अपने वैभव, कुर्सी, ठाट-बाट और शान-शौकत का संरक्षण चाहते हैं तो यह आपकी भूल है। हिंसा का संरक्षण अहिंसा से कैसे हो सकता है ? राष्ट्र पर कोई आक्रमण करता है और आपका उस पर अपनत्व है, इसलिए उसकी सुरक्षा का दायित्व भी आप पर ही है। ऐसी स्थिति में यदि अहिंसा की ओट लेकर कोई राष्ट्र की सुरक्षा के दायित्व से बचना चाहता है तो यह उसे बदनाम करने की बात है। जहां ममकार है, वहां अहिंसा नहीं हो सकती। ममत्व की मात्रा जितनी कम होती है, अहिंसा का विकास उतना ही अधिक होता है।' अहिंसा और अभय
मैंने आगे कहा-'अहिंसक व्यक्ति की पहचान यह है कि वह न तो क्रूर हो सकता है और न कायर। जिस प्रकार निर्दयता बुरी है, उसी प्रकार बुजदिली भी अच्छी नहीं है। डराना हिंसा है तो डरना भी हिंसा है। अहिंसा के लिए अभय की साधना आवश्यक है। किसने कहा कि अहिंसा कायरों का धर्म है ? अहिंसक में जो वीर वृत्ति होती है, वह एक हिंसक में नहीं हो सकती। हिंसा क्यों होती है-इस प्रश्न पर गंभीरता से चिंतन करें तो यह तथ्य बहुत स्पष्ट रूप से उजागर होता है कि हिंसा का कारण भय है। आप जा रहे हैं। मार्ग में भैंस मिलती है। आपको देखते ही वह आक्रामक मुद्रा में आ जाती है। इसका कारण यही तो है कि वह आपसे
अहिंसा : एक विश्लेषण
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